Wednesday, November 27, 2019

दौड़ धूप की ज़िंदगी से अवकाश अब लेता हूँ

दौड़ धूप की ज़िंदगी से अवकाश अब लेता हूँ 
श्याम हो गयी है, खुल के साँस अब लेता हूँ 

नहीं मुकाम आसान था ये बिना सभी के साथ के
आज सभी को अपना आभार प्रकट कर लेता हूँ

दो हिस्सों में बाँटता रहा वक़्त मैं आज तक
दोनो हिस्सों को अपने ही पास रख लेता हूँ

शिकवें तो बहुत होंगे मेरे अपनो को मुझ से
थोड़ा थोड़ा वक़्त उनमे बाँट अब लेता हूँ

मसरूफ़ियत ने छिना है केइ दोस्त यार मुझ से
वक़्त से वापस हर बिछड़ा यार अब लेता हूँ

दौड़ धूप की ज़िंदगी से अवकाश अब लेता हूँ 
श्याम हो गयी है, खुल के साँस अब लेता हूँ 

किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...