Thursday, August 9, 2018

मेरे मन के गगन में

मेरे मन के गगन में जो सोच के ये तारें हैं
कुछ टिमटिमा के जल रहें, बुझ गये बाकी सारे हैं

अंदर अंदर से खोखले ऊपर ऊपर से प्यारे हैं
ज़रा कहीं उजाला है बाकी सब अँधियारे हैं

थके हुए, सोए से हैं, पर मन रखे सवारे हैं
नासमझ, नादान हैं, नाराज़, बिचारे हैं 

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Friday, August 3, 2018

कविता


भावना में जब तुम होती हो आधी अधूरी
उत्सुकता रहती है देखने को तुम्हे पूरी
ना तुम आती हो पूर्ण स्वरूप में ना नींद
कविता, तुम मुझसे मिलने से सकुचाती क्यूँ हो?

सोच की गहराई तक जाके मेरी परीक्षा लेती हो
मेरी अपूर्णता का मुझे आभास कराती हो
ना तुम बनती हो सोच का प्रतिबिंब ना सपने
कविता, तुम इतने धीरे धीरे आती क्यूँ हो?

एक तरफ हँसती प्रेरणा है एक तरफ रूठी हो तुम
ओझल होती प्रेरणा जब तक आती हो तुम
ना तुम रह पाती भावना में ना प्रेरणा
कविता, तुम प्रेरणा से इतनी लज्जाति क्यूँ हो?

तुमसे में समर्पण मांगू तो ना कहती हो
तुम पर मैं समर्पित हो जाऊँ तो ना कहती हो
ना मैं तुम्हारे बिना रह पाऊँ ना तुम्हारे साथ
कविता, तुम इस समाज की भाँति क्यूँ हो?

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बेटे, नहीं रोते


कहते थे बचपन में पापा, "बेटे, नहीं रोते
छोटी छोटी बातों से हिम्मत नहीं खोते

एक बार गिरने से अगर यूँ डर जाओगे
टूटे जो ख्वाब कोई, कैसे जोड़ पाओगे?
कंकर पत्थर अगर रोकने लगे रास्ता
उम्मीदों के चट्टानो से कैसे पार पाओगे?

चोटी हो मंज़िल तो बोझ निराशा के नहीं ढोते
छोटी छोटी  चोटों से थक कर नहीं सोते
बेटे, नहीं रोते

अंधेरा घना है तो क्या? रात है!
चाँद तारें सब जिसके साथ है
सुबह का आगाज़ सूरज करेगा ही
पर रात में भी अपनी ही बात है

उतार चढ़ाव ज़िंदगी को नहीं झक झोरते
हार मान हम हताशा के काँटे नहीं बौते
बेटे, नहीं रोते"

कहते थे बचपन में पापा

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मुसाफिर मैं

वह कास्ती सा, जो अंजान अपने साहिल से
मुसाफिर मैं, बे-खबर अपनी मंज़िल से
चलना मेरा काम, रास्ते मेरे साथी
क्या लेना मुझे, दुनिया, तेरी महफ़िल से

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...