Friday, August 21, 2020

खिड़की

तुमसे इश्क़ हो गया है

होता भी क्यूँ ना?

घंटो तुम्हारे पास ही जो बैठा रहता हूँ

कभी कुछ सोच कर मुस्कुराता हूँ

कभी मायूस हो जाता हूँ

मुझे पता है, तुम सब देखती हो 

मुझे यूँ देख कर खूब हँसती हो


तुमसे एक बात कहनी थी

तुम सोचती होगी मैं तुम्हारे पास बैठता हूँ, 

ताकि तुम्हारे ज़रिये बाहर देख सकूँ

यह पूरा सच नहीं है

मैं बैठता तो हूँ बाहर देखने के लिए

मगर कुछ देर बाद कुछ दिखता ही नहीं

फिर सिर्फ़ तुम होती हो और मैं


हर शाम जो हम चाय पे मिलते हैं

मैं चुसकी लेता हूँ, और तुम मुझे देखती रहती हो

मुझे अच्छा लगता है

ठहरा हुआ वक़्त ज़रा गुज़र जाता है

तुम्हारे साथ मैं कुछ पलों को फिर से जी लेता हूँ

यूँ लगता है तुम कहती हो ज़िंदगी में

आगे सब धुँधला तो है, पीछे का सफ़र सिर्फ़ मेरा है

 

तुम सोचती होगी मैं तुम्हे भूल जाऊँगा

वक़्त और मुझ में जब रंजिश होगी

मैं तुम्हे अनदेखा करूँगा

अफ़सोस तुम्हारी यह सोच ग़लत भी नहीं है

तुम्हारे साथ यही तो रिश्ता है

मैंइश्क़ हो गया है’, यह कहता रहूँगा

तुम चुपचाप निभाती रहना

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