Thursday, September 22, 2011

गम में गहराई तो होगी कम

हर  आलम  को  जो  न करना  है  बयां
हर  बेवसी  जो  न  छोड़े  निशान 
मजबूरियों का  न  हो  जो  कोई  दास्ताँ 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 
 
आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

कहने  को  तो  मैं  कुछ  भी  कह लूँ  
वजह  पर  कोई  न  दे  पाऊँ  शायद 
करने  को  है  तय  मंजिलें  कई 
एक  कदम  भी  न  जा  पाऊँ शायद

अरमान  खिलें  हैं  गुलशन  की  तरह 
करना  पर  है  खुशबु  बे-असर 
पायेगा  तूफ़ान  जो  ज़िक्र  भी  उसका 
आ  जायेगा  करने  तबाह  बे-सबर 

दिल  में  ही  रहे  जो  दिल  की  सदा
न  होगा  कोई  जो  मुझ  से  खफा 
मांगे  न  कोई  जो  मुझ  से  वफ़ा                 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 

आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...