Wednesday, June 20, 2012

चाँद की शिकायत

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

बेसब्र मैं और यह मुझे
और बेचैन कराता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

रोज मैं इससे मिन्नतें किया करता हूँ;
महोब्बत की दुहाई भी दिया करता हूँ;
समझ सके मेरी हालत को इसलिए,
कुछ अफ़साने सुना दिया करता हूँ!

पर यह मेरे जज्बातों का,
बेझिझक मजाक उडाता है;
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

अब नहीं होता इंतज़ार रे;
बर्दाश्त की हद हुआ  पार  रे
सावन तो आया पर आँखें हैं प्यासी,
दिल में उदासी बरकरार है!

बादलों में खेल लुक्काछुप्पी,
मायूसी और बढाता है!
महीने में सिर्फ एक ही बार तो,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा  दिखाता  है!

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...