Monday, April 4, 2011

मगरूर मंजिल नहीं मिलती डरपोकों से

आंधी  होती ही  है  उड़ाने  के  लिएबिजली  होती  ही  है  चेताने  के  लिएअँधेरा  होता  ही  है  डराने  के  लिएधूप  होती ही  है  जलाने  के  लिए कदम  रुक  जाये  चलते  चलते  अगरक्या  होगा  आगे  यह  सोच  करभूल    जाना  कभी  राह  मेंमगरूर  मंजिल  नहीं  मिलती  डरपोकों  से काँटे हो तो चुभेगा हीचोट हो तो दुखेगा हीकोहरा हो तो छाएगा हीबादल तो बरसेगा ही थक  जाओ  अगर  मुश्किलों  से  लढते  लढतेरुक  जाओ  अगर  कहीं  आगे  बढ़ते  बढ़तेभूल    जाना  कभी  राह  मेंमगरूर  मंजिल  नहीं  मिलती  डरपोकों  से  

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Saturday, April 2, 2011

कुछ बात अनकही..

मैं  तुझे  दूर  तक  देखना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  मेरे पलकें  गिरे  नहीं 
के  आशुं   कहीं  कुछ  ज़ज्बात  बयां  न  कर  दे 

मैं  तेरे  करीब  रहना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  दूर  न  जा  सका 
के  फासले  कहीं  बिछड़ना  आशान  न  कर  दे 

मैं  तेरे  बारे  में  सोचना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  देखा  तेरा  सपना 
के  तनहाई  कहीं  ज़िन्दगी  वीरान  न  कर  दे 

मैं  तुझ  से  यह  सब  छुपाना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  कुछ  बता  न  पाया 
के  मेरा  दर्द  कहीं  तुझे  परेशान  न  कर  दे 


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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...