Friday, June 30, 2017

बात का बतंगड़ बन सकता है

चुप रह, खामोश रह कि एक झोंका भी बवंडर बन सकता है
सोच समझ कर बात कर, 'गणेश', कि बात का बतंगड़ बन सकता है

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Saturday, June 24, 2017

बचपन कहाँ चला गया

मा की लॉरी से, ममता की डोरी से
दादी की गोदी से, मिट्टी की घोड़ी से
हाथ छुड़ा गया
बचपन, कहाँ चला गया

कहाँ गयी वह पीपल की डाली
गली का बगीचा, ग़ुस्सेल माली
कहाँ गयी वह प्यारी कहानी
राजा की बातें, महलों की रानी

कौन सी ईमली को अब कंकर मारु
किस पनघट को घंटो निहारू
किस पंछी  के अब पीछे भागु
किस सोए कुत्ते को अब लात मारु

यूँ ही घूमने से, मस्ती में झूमने से
बेवजह नाचने से, बेवजह रूठने से
हाथ छुड़ा गया
बचपन, कहाँ चला गया

कड़ी धूप में नदी में नहाना
रिमझिम बारिश का पानी उछालना
बरामदे पे गुज़रे सर्दी के वह दिन
चाँद देखते हुए रास्ते नापना

भागते भागते ज़ोरों से गिर जाना
कोई देखा या नहीं पता लगाना
फिर खुद को खुद ही संभालना
गुस्सा ज़रा सा ज़मीन पर दिखाना

मासूमियत से, घबराहट से
बदमाशियों से, शैतानियों से
हाथ छुड़ा गया
बचपन, कहाँ चला गया

मा की लॉरी से, ममता की डोरी से
दादी की गोदी से, मिट्टी की घोड़ी से
हाथ छुड़ा गया

बचपन, कहाँ चला गया

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...