दौड़ धूप की ज़िंदगी से अवकाश अब लेता हूँ
श्याम हो गयी है, खुल के साँस अब लेता हूँ
नहीं मुकाम आसान था ये बिना सभी के साथ के
आज सभी को अपना आभार प्रकट कर लेता हूँ
दो हिस्सों में बाँटता रहा वक़्त मैं आज तक
दोनो हिस्सों को अपने ही पास रख लेता हूँ
शिकवें तो बहुत होंगे मेरे अपनो को मुझ से
थोड़ा थोड़ा वक़्त उनमे बाँट अब लेता हूँ
मसरूफ़ियत ने छिना है केइ दोस्त यार मुझ से
वक़्त से वापस हर बिछड़ा यार अब लेता हूँ
दौड़ धूप की ज़िंदगी से अवकाश अब लेता हूँ
श्याम हो गयी है, खुल के साँस अब लेता हूँ
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