माथे पे तेरे शिकन की परछाई न आ जाये,
दिल डरता है!
जुवान से मीठी शहद की बहाव कहीं न थम जाए,
दिल डरता है!
आँखों के समंदर में तूफ़ान कहीं न उमड़ आये,
दिल डरता है!
रंग अपना बदल कर चाँद बादलों में कहीं न छिप जाए,
दिल डरता है!
ऐसे में अधूरा अफसाना
तुम से मैं भला कैसे कहूँ
सुनना चाहो जो तुम वह अगर
सो जाओ वह बात कहूँ
लेखक: महाराणा गणेश
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