Wednesday, June 26, 2019

मेरे साथ तू अधूरी थी

रोज़ शाम छत से चाँद देखने का वादा था

बिछड़ने का मोल शायद यह भी कुछ ज़्यादा था

गुजरी है ज़िंदगी तेरे बगैर कुछ ऐसे कि लगे

मेरे साथ तू अधूरी थी, तेरे साथ मैं आधा था


No comments:

Post a Comment

किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...