Wednesday, December 25, 2013

रूठी जो हम से तुम

रूठी जो हम से तुम

रूठ गई शायद हसी

पहले लबों पर सजती थी

बस आजकल आती नहीं


तुम्ही ने दी हमको कई

लम्हे ख़ुशी के सुनहरे

दिखाई हो कितने रास्ते

सुलझाई हो कितने माज़रे


पर अब है अँधेरा आशियाँ

दीपक है, बाती नहीं

पहले लबों पर सजती थी

बस आजकल आती नहीं


हमसे यह कैसी नाराज़गी

ऐसी भी क्या हुई है ख़ता

ना सह सकेंगे बेरुखी

ये राज़ तुमको भी है पता


बेरंग मधुशाला में आज

मधु है पर साकी नहीं

पहले लबों पर सजती थी

बस आजकल आती नहीं


रूठी जो हम से तुम

रूठ गई शायद हसी

पहले लबों पर सजती थी

बस आजकल आती नहीं


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