Sunday, August 9, 2009

रुक जा ज़रा जाने से पहले



तेरी आँखों में मेरी एक छवि तो दिखने दे
तेरे दिल में मेरी एक याद तो टिकने दे

रुक जा ज़रा जाने से पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे

तेरे संग बिताये हर लम्हा
कलम के सहारे कागज़ पे उतार दूँ
हर नोकझोंक हर वाकया
लफ़्ज़ों के ज़रिये छंदों में सवार दूँ

जुदाई के पहले तुझसे मेरी
दोस्ती के कुछ दास्ताँ तो बने
बंधनों से आज़ादी से पहले
खुमारी के कुछ समां तो बने

गुलशन में कुछ और फूल भी खिलने दे
तेरी ही मदमस्त खुशबु उन्हें भी मिलने दे
ताज़ा कोई घाव देने से पहले
मेरा ज़ख्म पुराना सिलने दे

रुक जा ज़रा जाने पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे

तेरी आँखों में मेरी एक छवि तो दिखने दे
तेरे दिल में मेरी एक याद तो टिकने दे

रुक जा ज़रा जाने से पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे

अपना अनुभव ज़रूर बतायें

2 comments:

  1. Bahot dard hai .... gud very heart touching

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  2. Bahut hi khubsurat nazm hai isi ke saath hi aapko janam din ki bahut bahut mubarakbaad

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किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...