रुख़ हवा का तय करता है मैं किधर जाऊं
फिर क्या हुआ जो खुद की नज़र से उतर जाऊं
भीड़ में हूँ मैं बस एक भेड़
सब जिधर जाएँ, मैं भी उधर जाऊं
पानी सा हूँ, रंग नहीं है मेरा कोई
जो मिले, घोल के खुद में नीचे गुज़र जाऊं
फिर क्या हुआ जो खुद की नज़र से उतर जाऊं
भीड़ में हूँ मैं बस एक भेड़
सब जिधर जाएँ, मैं भी उधर जाऊं
पानी सा हूँ, रंग नहीं है मेरा कोई
जो मिले, घोल के खुद में नीचे गुज़र जाऊं
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