Sunday, August 3, 2014

गब्बर: मैं बड़ा डाकू हूँ या वह है

कितने  आदमी थे?

कितने  आदमी थे? 

कितने  आदमी थे, पर कोई न आया 

इंसानियत तो किसी में ना समाया 

रोती रही वह, पिलाघति रही वह 

कुछ शैतानों ने  उसको जलाया

दहेज़ के खातिर जल गयी वह 

जाने कब से है जल रही वह

तीर हमारे जो दिल में लगी है

सदियों से हमको है खल रही वह

सदियों से इसको जो रोक न पाया

कहता है पर "भागो गब्बर आया"

अरे, मैं बड़ा डाकू हूँ या वह है

जिसने ज़मीर अपनी बेचकर खाया

1 comment:

किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...