Friday, April 4, 2014

मैं कौन हूँ?

मैं एक हाड़ मास का पुतला
पुतले में इक जान भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है


जो तय है ऐसा मंज़िल नहीं
जो तय है ऐसा रास्ता नहीं
खुद से लढ के जहाँ भी जाऊँ
मंज़िल वही है रास्ता वही


ज़माने की परवाह बहुत है मगर
ज़माने की आदतों से बग़ावत ना होती
अपने विचार अगर मुझपे ना थोपे
तो ज़माने से कोई शिकायत ना होती


कई दिन बाद आईने को गौर से देखा
उसमे मैं था भी और मैं था भी नहीं
मुझे खुद को बचाके रखना होगा
खुद को रोटी से ना हार जाऊँ कहीं


यही तीन शेरों में मैं हूँ
मेरी ज़िंदगी भी एक नज़्म भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है


मैं एक हाड़ मास का पुतला
पुतले में इक जान भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है

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