Saturday, April 2, 2011

कुछ बात अनकही..

मैं  तुझे  दूर  तक  देखना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  मेरे पलकें  गिरे  नहीं 
के  आशुं   कहीं  कुछ  ज़ज्बात  बयां  न  कर  दे 

मैं  तेरे  करीब  रहना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  दूर  न  जा  सका 
के  फासले  कहीं  बिछड़ना  आशान  न  कर  दे 

मैं  तेरे  बारे  में  सोचना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  देखा  तेरा  सपना 
के  तनहाई  कहीं  ज़िन्दगी  वीरान  न  कर  दे 

मैं  तुझ  से  यह  सब  छुपाना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  कुछ  बता  न  पाया 
के  मेरा  दर्द  कहीं  तुझे  परेशान  न  कर  दे 


अपना अनुभव ज़रूर बतायें

2 comments:

  1. I wish u dun avoid that pretty gal 4 whom u hv composed the verses. I feel the soul must be like a dream so pure, so innocent yet so unrevealing!

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...