Sunday, December 4, 2011

तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती!


प्यार भी हैरान है कि मैं तुझे  इतना प्यार क्यूँ करता हूँ !
तू मेरे पास नहीं तो कैसे तुझ से रु-ब-रु होता हूँ !

     
महोब्बत की कसम कि तेरे मिलने से पहले ये आलम था !
महोब्बत क्या होती है यह मुझे नहीं मालूम था ?!


एक तेरा ही अरमान, एक तेरी ही आरजू, जुस्तजू !
                    बाकि जहां में मुझे कोई भी चीज़ नहीं जचती !
गर जहाँ तक मेरी नज़र जाये वह सब कुछ मेरा होता !
                   तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती !



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Friday, October 14, 2011

मन ऊब जाता है अक्सर ऐसे किस्सों से


देखा  किये, मिलना  हुआ, समझे  भी  एक  दुसरे  को  हम, 
लगा  मैं  उनकी  और वह  मेरी   ज़रुरत  हो  जैसे! 
दिन  बीते,  महीने  बीते , फिर  आयी  एक  शाम और वह  पल,
जो  फिर से अनजान  बनाने   का  महूरत  हो  जैसे!

मन  ऊब  जाता  है  अक्सर  ऐसे  किस्सों  से, 
बेमतलबी  बातों  से,  मतलबी  रिश्तों  से!

DEKHA KIYE, MILNA HUA, SAMJHE BHI EK DUSRE KO HUM,
LAGA MAIN UNKI AUR WOH MERI ZAROORAT HO JAISE!
DIN BEETE, MAHINE BEETE, PHIR AAYI EK SHAAM AUR WOH PAL,
JO PHIR SE ANJAAN BANANE KA MAHURAT HO JAISE!

MAN OOB JATA HAI AKSHAR AISE KISSON SE,
BEMATLABI BATON SE, MATLABI RISHTON SE!

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Thursday, September 22, 2011

गम में गहराई तो होगी कम

हर  आलम  को  जो  न करना  है  बयां
हर  बेवसी  जो  न  छोड़े  निशान 
मजबूरियों का  न  हो  जो  कोई  दास्ताँ 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 
 
आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

कहने  को  तो  मैं  कुछ  भी  कह लूँ  
वजह  पर  कोई  न  दे  पाऊँ  शायद 
करने  को  है  तय  मंजिलें  कई 
एक  कदम  भी  न  जा  पाऊँ शायद

अरमान  खिलें  हैं  गुलशन  की  तरह 
करना  पर  है  खुशबु  बे-असर 
पायेगा  तूफ़ान  जो  ज़िक्र  भी  उसका 
आ  जायेगा  करने  तबाह  बे-सबर 

दिल  में  ही  रहे  जो  दिल  की  सदा
न  होगा  कोई  जो  मुझ  से  खफा 
मांगे  न  कोई  जो  मुझ  से  वफ़ा                 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 

आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

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Tuesday, August 23, 2011

छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?

न  जाने  क्यूँ  दिल  बुलाये  तुमको  बेसबर
छुपी  हो  तुम  इस  तस्वीर  में  क्यूँ मगर? 


सोचता  हूँ  क्या  कुछ  गुफ्तगू  हो सकती  है 
पर  जाने दो,  इस दीद  से  ही  जान  अटकी  है
                तो  क्या होगा  गर  तुम हो जाओ  रु-ब-रु
                बेहोशी  का  आलम  होगा, जान पड़ती  है
 

कहना  है कुछ पर, तुम बुरा  मान  जाओ अगर 
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
 

न जाने क्यूँ दिल बुलाये तुमको बेसबर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?

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Sunday, August 21, 2011

कैसी भी हालात में अपने दामन को साफ़ रखें!

खुद  के  अधिकारों  की  रक्षा  करने  की जज़्बात  रखें!

            सच्चाई  के लिए  हमेशा  सही  हाथों  में  हाथ  रखें!

भ्रष्टाचार  से  लढते हुए  चलो  आज  यह  कसम  खाए,
              
           कैसी  भी  हालात  में हम  अपने  दामन  को  साफ़  रखें!

KHUD KE ADHIKARON KI RAKSHA KARNE KI JAZBAAT RAKHEN!
SACHCHAI KE LIYE HAMESHA SAHI HATHO MEIN HAATH RAKHEN!
BHRASHTACHAR SE LADHTE HUYE CHALO AAJ YAH KASAM KHAYE,
KAISI BHI HALAAT MAIN HUM APNE DAAMAN KO SAAF RAKHEN!

Monday, August 15, 2011

एक ख्वाहिश जगी हुई है


कहीं  किसी  कोने  में  दिल  के 
एक  आस  सी  दबी  हुई  है 
एक हसरत  पूरी  हुई  तो 
एक ख्वाहिश  जगी  हुई है

ख्वाब  हकीक़त  बनने  को  है पर 
ज़ंजीर ज़रा सी तनी हुई है
एक हसरत पूरी हुई तो
एक ख्वाहिश जगी हुई है

मुश्किल  महज़ हवा  सी है
जहाँ  जाओ  वहाँ  रहती  है
उफान में हो तो हर नदी 
किनारे डुबो के बहती है

चोट  कभी  कभी होती  है अच्छी
दर्द  जीने  का एहसास दिलाता  है
ठेस  लगने  का नफा भी है 
दिल  संभलना  सीख  जाता  है

यह  रात  तो लम्बी  थी  थोड़ी 
पर  सुबह  ने  दस्तक  दी  हुई है
एक हसरत पूरी हुई तो
एक ख्वाहिश जगी हुई है

कहीं किसी कोने में दिल के
एक आस सी दबी हुई है
एक हसरत पूरी हुई तो
एक ख्वाहिश जगी हुई है

Wednesday, August 10, 2011

बस यह चाहता हूँ मैं


 मैं  अच्छा  नहीं  मैं  बुरा  नहीं
 मेरे  जाने  से  पहले  मुझे  तुम  सही  से समझ  लो 
 बस  यह  चाहता  हूँ  मैं

मेरे अच्छाइयों  को  न  तुम बुरा कहना 
मेरे बुराइयों  को न तुम अच्छा कहना

इन्ही  सब  से मेरी  यह पहचान  है 
इन  सब पे  मुझे बड़ा  मान  है

मुझे  थोडा  सा  ज्यादा  इज्ज़त  दो  तुम
मेरी  थोडा और  तारीफ  करो  तुम
कब  यह चाहता हूँ मैं

मैं अच्छा नहीं मैं बुरा नहीं
मेरे जाने से पहले मुझे तुम सही से समझ लो
बस यह चाहता हूँ मैं

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Sunday, June 12, 2011

भ्रस्टाचार, तू कब मुझ में समाया था?

आम के बगीचे में घूम रहा था
देखा, पेड़ से एक आम झूल रहा था
छोटा था मैं पर हाथ पहुँच रहा था
तोड़ने से पहले एक बार सोचा था
आम पर मेरा अधिकार कोई ना था
लोभ था भारी पर मेरे सोच पर,
भागा था मैं आम को तोड़ कर

चोरी से जब किसी और का कुछ खाया था
भ्रस्टाचार, क्या तब तू मुझ में समाया था?

जितना भी आता था सब लिख डाला था
सोचा किसी को ज़रा पूछ लेता हूँ,
पूछ  कर थोड़ा कुछ और लिख देता हूँ
देखा एक लड़का कर रहा था नक़ल
कहा दे मुझे वरना जानेगा मास्टर 
दिया पर्चा मुझे  वह डर कर
ख़ुशी ख़ुशी किया मैंने नक़ल 

इस तरह जब चोरी कर के अंक कमाया था
भ्रस्टाचार, क्या तब तू मुझ में समाया था?

नाचा था मैं कोई पागल की तरह
दोस्त की शादी थी इसकी वजह
दोस्त बहुत खुश था और हम भी
दहेज़ में मिली थी गाड़ी और रकम भी
सोचा था कभी मैं भी शादी करूँगा
दहेज में खूब धन माँग आऊँगा
बिना मेहनत के धनी बन जाऊंगा

दूसरे का धन देख जब मैं ललचाया था
भ्रस्टाचार, क्या तब तू मुझ में समाया था?






Saturday, April 2, 2011

कुछ बात अनकही..

मैं  तुझे  दूर  तक  देखना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  मेरे पलकें  गिरे  नहीं 
के  आशुं   कहीं  कुछ  ज़ज्बात  बयां  न  कर  दे 

मैं  तेरे  करीब  रहना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  दूर  न  जा  सका 
के  फासले  कहीं  बिछड़ना  आशान  न  कर  दे 

मैं  तेरे  बारे  में  सोचना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  देखा  तेरा  सपना 
के  तनहाई  कहीं  ज़िन्दगी  वीरान  न  कर  दे 

मैं  तुझ  से  यह  सब  छुपाना  नहीं  चाहता  था 
वह  तो  इस  डर  से  कुछ  बता  न  पाया 
के  मेरा  दर्द  कहीं  तुझे  परेशान  न  कर  दे 


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Tuesday, March 29, 2011

गर यह पता होता

फिर  कभी  न  मिलने  वाले  थे 
                                गर  यह  पता  होता 
उन  दिनों  शायद  मैं 
                                कुछ  देर  कम  सोता 

जब  भी  मैं  तुझे  छत  पर  देखता 
                                मेरी  राह  ताकते  हुए 
जब  भी  तू  हसती  रहती  थी 
                                मेरी  नकल करते  हुए 

जब  भी  तू  नाचती  थी 
        बेखबर  मेरी  मौजूदगी  से 
भनक  ही  से  मेरी  जब  तू 
                                भाग  जाती  थी  रोशनी से 

मेरे  चेहरे  के  रंगत  में 
                               निखार ज़रूर कुछ  ज्यादा  होता 
और  उन  दिनों  शायद  मैं 
                               कुछ  देर  कम  सोता 
                               
फिर  कभी  न  मिलने  वाले  थे 
                               गर  यह  पता  होता 
उन  दिनों  शायद  मैं 
                               कुछ  देर  कम  सोता 
                               




                               

Saturday, February 12, 2011

रात की पाली (Night Shift)

शाम का इंतज़ार नहीं रहता आज कल,

सुबह तुझ से मिलने को दिन मचलता है;

सूरज के उगते ही रात हो जाती है,

चाँद के साथ फिर दिन निकलता है!


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Monday, January 31, 2011

क्यूँ होना मायूस उस ज़िन्दगी से

क्यूँ होना मायूस उस ज़िन्दगी से;
जो खुद मायूस रहना चाहती है;
तुम ज़िन्दगी के सहारे जीना चाहते हो?
ज़िन्दगी तुम्हारे सहारे जीना चाहती है!

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Saturday, January 15, 2011

बेशक याद है

देखा है कई बार सूरज को पीला पड़ते हुए,
देखा भी है तेरे चेहरे को गुलाबी रंग ओढ़ते हुए,
यह आलम है अब के याद नहीं श्याम होती की नहीं,
पर बेशक याद है कैसे तू रो पड़ती थी हसते हुए!

पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था