यह पत्तें कितने सूखे हैं
शायद मेरी तरह भूखे हैं!
न जाने कब लहराए थे;
है आज मगर मुरझाये से;
कांपते हैं ये सहमाये से;
ऊपर से रूखे रूखे हैं;
शायद मेरी तरह भूखे हैं!
उनमे से एक गिर ही गया;
अपनी ज़िन्दगी वह जी गया;
सजीब्ता जितनी भी थी गया;
औरों के लिए भी मौके हैं;
क्या वे भी मेरी तरह भूखें हैं?!
यह पत्तें कितने सूखे हैं
शायद मेरी तरह भूखे हैं!
लेखक: महाराणा गणेश
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