के विशाल नाराज़ क्यूँ है मुझ से?
उस सोच से निकला नहीं था के प्रशांत भी खफ़ा हो गया;
ज़हन में इक यही बात थी कि ऐसा क्या खता हो गई!
आज जाके मुझे पता चला के उनके नाराज़गी की वजह क्या थी;
विशाल को बिसाल और प्रशांत को प्रोसांत जो मैं कह रहा था!
बुरा ना मानो दोस्तों के मैं यह गलती जान बुझके ना किया करता था;
कोई मेरा नाम पूछे तो मैं भी 'गणेश ' नहीं 'गणेस' कहा करता था!
पहले मैं नाराज़ के वजाय नाराज हुआ करता था;
पहले मैं ऐश के जगह एस किया करता था;
पहले मुझे शर्म नहीं आती थी , पर मैं सर्माता था;
पहले मैं कैश के जगह लोगों को केस दिया करता था!
हुए कितने दोस्त बेवफा , हुए कितने अपने पराये;
छूटा साथ कितने साथियों का , छूटे कितने ख़ुशी के साये;
बस एक तू है जिसने मुझे दिया हमेशा सहारा;
मेरी मातृभाषा तुने मुझे कभी ना सुधारा;
मैं जैसा हूँ मुझे वैसे ही अपनाया;
मेरे सहुलियत के हिसाब से खुद को बनाया!
शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरा इस बात के लिए;
साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!
लेखक: महाराणा गणेश
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