Friday, April 8, 2011
Monday, April 4, 2011
मगरूर मंजिल नहीं मिलती डरपोकों से
आंधी होती ही
है
उड़ाने
के
लिएबिजली होती
ही
है
चेताने
के
लिएअँधेरा होता
ही
है
डराने
के
लिएधूप होती ही
है
जलाने
के
लिए कदम रुक
जाये
चलते
चलते
अगरक्या होगा
आगे
यह
सोच
करभूल न
जाना
कभी
राह
मेंमगरूर मंजिल
नहीं
मिलती
डरपोकों
से काँटे हो तो चुभेगा हीचोट हो तो दुखेगा हीकोहरा हो तो छाएगा हीबादल तो बरसेगा ही थक जाओ
अगर
मुश्किलों
से
लढते
लढतेरुक जाओ
अगर
कहीं
आगे
बढ़ते
बढ़तेभूल न
जाना
कभी
राह
मेंमगरूर मंजिल
नहीं
मिलती
डरपोकों
से
लेखक: महाराणा गणेश
अपना अनुभव ज़रूर बतायें Saturday, April 2, 2011
कुछ बात अनकही..
मैं तुझे दूर तक देखना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से मेरे पलकें गिरे नहीं
के आशुं कहीं कुछ ज़ज्बात बयां न कर दे
मैं तेरे करीब रहना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से दूर न जा सका
के फासले कहीं बिछड़ना आशान न कर दे
मैं तेरे बारे में सोचना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से देखा तेरा सपना
के तनहाई कहीं ज़िन्दगी वीरान न कर दे
मैं तुझ से यह सब छुपाना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से कुछ बता न पाया
के मेरा दर्द कहीं तुझे परेशान न कर दे
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