Sunday, June 1, 2014

रास्तों पर खड़े ये पेड़ क्या सोचते होंगे?

अपनी किस्मत को शायद कोसते होंगे
रास्तों पर खड़े ये पेड़ क्या सोचते होंगे?

कभी यहाँ उनके कुछ दोस्त रहे होंगे
एक दूसरे से वे ढेर बातें किए होंगे

मुद्दत हो गयी जब से वे बिछड़े होंगे
याद होगी कैसे उनके हुए चिथ्डे होंगे

एक रास्ता गुज़रता है उस जगह से अब
गाड़ियाँ गुज़रती  है उस सतह से अब

गुज़रती गाड़ियों से क्या बोलते होंगे?
रास्तों पर खड़े ये पेड़ क्या सोचते होंगे?

गाड़ियों से अक्सर धुआँ भी निकलता है
धूल उड़कर इन पेड़ों पर चिपकता है

हरे हरे पेड़ काला रंग ओढ़ते हैं
गाड़ियों के शॉरों से माहौल बनते हैं

शॉरों के बीच में चंद ही पेड़ हैं
गिनती में दो तीन या फिर डेढ़ हैं

अकेले अपनी शाखाओं से ही बातें करते होंगे
रास्तों पर खड़े ये पेड़ क्या सोचते होंगे?

अपनी किस्मत को शायद कोसते होंगे
रास्तों पर खड़े ये पेड़ क्या सोचते होंगे?

Friday, April 4, 2014

मैं कौन हूँ?

मैं एक हाड़ मास का पुतला
पुतले में इक जान भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है


जो तय है ऐसा मंज़िल नहीं
जो तय है ऐसा रास्ता नहीं
खुद से लढ के जहाँ भी जाऊँ
मंज़िल वही है रास्ता वही


ज़माने की परवाह बहुत है मगर
ज़माने की आदतों से बग़ावत ना होती
अपने विचार अगर मुझपे ना थोपे
तो ज़माने से कोई शिकायत ना होती


कई दिन बाद आईने को गौर से देखा
उसमे मैं था भी और मैं था भी नहीं
मुझे खुद को बचाके रखना होगा
खुद को रोटी से ना हार जाऊँ कहीं


यही तीन शेरों में मैं हूँ
मेरी ज़िंदगी भी एक नज़्म भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है


मैं एक हाड़ मास का पुतला
पुतले में इक जान भरा है
और जिसको मैं मैं कहूँ
वह तो एक विचार भरा है

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Tuesday, December 24, 2013

आज का गब्बर

अभिनेताओं से बड़ा ये अभिनेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं,  नेता है
लूटने की हमे  क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है

वह घोड़े पे आता था, ये गाड़ी में आता है
वह पहाड़ी पे रहता था, ये  बंगले में रहता है
वह होली पे लूटने आता  था
ये बिना आये ही लूट लेता  है

वह खाकी पहनता था, ये खादी पहनता है
वह अनाज ही लूटता था, ये चारा भी लूटता है
खुद के वज़ूद को बचाने की खातिर
वह हाथ काटता था, यह देश काटता है

लोगों के सपनो को अपना कहके बेचे, ऐसा बिक्रेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं,  नेता है
लूटने की हमे  क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है






Saturday, November 9, 2013

घड़ी और कॅलंडर

सुबह सवेरे आज मैने, जब आईना देखा
रह गया हैरान जब खुद को ही ना देखा
दिखा तो बस एक घड़ी और कॅलंडर
बातें कर रहे थे, उस आईने के अंदर

घड़ी बोला, कॅलंडर भाई, अब तू तो उतर जाएगा
तेरी जगह पर कोई दूसरा, अब यहाँ पर आएगा
कैसा लग रहा है तुझे, होने वाली इस बात पर?
कहना चाहेगा कुछ तू, बदल रहे हालात पर?

दुखी मन से कॅलंडर बोला, कहूँ मैं क्या, घड़ियाल
उम्र मेरी तो होती है, बस एक ही साल
एक बात है, खुश था बहुत, जिस दिन मैं आया था
नई आस एक सब के दिल में, मैने जगाया था

हुआ था स्वागत मेरा तो खूब आतिशबाज़ी से
नाच रहे थे, झूम रहे थे लोग बहुत मस्ती से
सोचा मैं, ऐसा है अगर आगाज़ मेरे जीवन का
होने वाला है फिर खूब अंदाज़ मेरे जीवन का    

जाते जाते पर लगता है, कमी बहुत है रह गयी
बहुतों की ख्वाहिशें जो, ख्वाहिशें ही रह गयी
पता नहीं इतिहास में, कैसा दर्ज़ मैं हुंगा
डर है कहीं धोखेबाज़ तो नहीं कहलाऊंगा

मुस्कराते घड़ी बोला, खुद को दोष क्यूँ देता है?
नहीं तेरा जो काम उसके बिगड़ने से क्यूँ रोता है?
सही महिना दिन बताना, तेरे हाथ इतना ही था
देख उसे दिशा चुनने का काम मानव का ही था

तुझ से पहले जितने भी, टँगे थे इस दीवार पर
हाल दिल का सभी का था, ऐसा ही इस मोड़ पर
खुशी खुशी चला जा रख मत, मन पर कोई बोझ
अच्छे बुरे सभी वजह से, याद करेंगे लोग

पड़ी नज़र फिर तभी अचानक घड़ी की मेरी ओर
बोला वह, "है मानव यहाँ रहो चुप, कॅलंडर"
चकित मैं देखा मुड़के तो, घड़ी कॅलंडर दोनो थे
सुबह सवेरे आज, गुपचुप गुमसुम दोनो थे

Saturday, October 19, 2013

हाँ, वह भी एक दिया है


 












अंधेरों मे हमे भटकने से रोका, 
कच्चा मास भी खाने से रोका, 
जानवरों को पास आने से रोका, 
जंगल जला कर जिसने ज्ञान जगाया है, 
हाँ, वह भी एक दिया है! 

आने से पहले जिसको दर्द दिया, 
आते समय जिसको दर्द दिया, 
आने के बाद जिसको दर्द दिया, 
दर्द के बदले जिसने ममता बरसाया है, 
हाँ, वह भी एक दिया है! 

बरामदे में जाने कबसे वह खड़ा है, 
तूफान मे भी वह नहीं गिरा है, 
जर्जर अवस्था है, जीवन थोड़ा है, 
पर बरसों से जो उसने सेवा किया है, 
हाँ, वह भी एक दिया है! 

प्यासे को जिसने पानी पिलाया, 
अज्ञान का अंधकार मिटाया, 
उजाले की और का रास्ता दिखाया, 
ज्ञान के बदले वह कुछ ना लिया है, 
हाँ, वह भी एक दिया है! 

आने से जिसको मिलता भत्सना, 
हुआ स्वागत तो उसका कभी ना, 
औरों के त्रुटि से है जो बना, 
सफलता के पहले का जो आसन लिया है, 
हाँ, वह भी एक दिया है! 

Thursday, October 17, 2013

प्याज नवरस


श्रृंगार
स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा,
        मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा
हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा,
        ऐ प्याज, धरती से तू तब उभरा होगा

हास्य
आवेश में आकर पति बोला पत्नी से,
        छुटकारा मुझे कब मिलेगा तुझ से?
ले लूँ अगर उलटे वह साथ फेरे,
        क्या हो जाएँगे शादी के दिन पूरे?
पत्नी बोली किस बात की  है फ़िक्र तुमको,
        चलो सूझ रहा एक हल मुझ को
दस बोरी प्याज जो लाई थी दहेज में,
        वापस करो तो चली जाती हूँ अभी मैं
पति बोला जितना तू मुझ को रुलाई है,
        प्याज मे भी वह बात नहीं
दस बोरी प्याज तेरे मुँह पे मार देता,
        पर इतनी मेरी औकात नहीं

अद्भुत
फिर से सुर और असूरों मे जंग होता,
        आज अगर समुद्र मंथन होता
अमृत छोड़ प्याज लेकर एक असूर भागता,
        उसी वजह से उसका सिर छेदन होता

शांत
बहुत दिनों से रसोई मे जाकर वह रोई नहीं,
        ऐसा नहीं कि हमारे बीच कोई खिटपिट हुई नहीं
मेरी शादी की कविता में जो शांत रस का प्रभाव है,
        वह इसलिए क्यूंकी रसोई मे आजकल प्याज का अभाव है

रौद्र
अमीर ग़रीब हर कोई मेरे सामने एक सा था,
        स्वाद सब के पकवान को एक समान मैं देता था
चंद लोगों के लोभ ने पर मचा दिया है बदहाल,
        ग़रीब हो गया मुझसे दूर, चोर हो रहे मालामाल

वीर
हूँ प्याज मैं सुनलो,
        किस तेज़ का हूँ वंशज मैं
रुला सकता हूँ खुद कटके,
        कट सकता हूँ हस हसके

करुणा
काटते थे मुझको रो कर भी,
        खुश होते थे सब बाँट मुझे
हाय कैसा समय यह आ गया
        जो तरस रहे सब दाँत मुझे

भयानक
इक ऐसा क्या मंज़र होगा,
        स्थिति और बदतर होगा!
जो अभी निगल चुका हूँ मैं,
        क्या प्याज आखरी वह होगा?

विभत्स
जाने ये किसका दुकान है,
        यह प्याज है या कोई और सामान है
इतनी जमाखोरी जो की है कोई,
        छी! वह कैसा इनसान है!!

Thursday, May 23, 2013

पापा, मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह

मैं सोचता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं बोलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे सोच में आप ही की झांकी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!

जब कभी कहीं ऐसा मोड़ आता है,
जब चलना मुश्किल सा लगता है,
सारी उर्जा लगाने के बाद भी,
आगे बढ़ना मुश्किल सा लगता है!

आँख मूँद कर बस यह सोचता हूँ
कि आप होते तो क्या करते, पापा
और जो मन में आये वह कर देता,
फिर सफर सुहाना सा लगता है!

मैं गिरता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं उठता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं आप ही का अक्स हूँ, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!

मेरे साथ में हो, मेरे पास में हो,
आप मेरी हर सांस में हो,
अँधेरे में जब जीवन हो सारा,
एक आप ही मेरी हर आस में हो!

आप की हर बात याद है मुझे,
आप हर पल मेरी याद में हो,
बिछड़ गए हम बरसों पहले पर,
आप कल में थे, आप आज में हो!

मैं रुकता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं चलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे हर  कदम में आप की निशानी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!

मैं सोचता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं बोलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे सोच में आप ही की झांकी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!
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MAIN SOCHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN BOLTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE SOCH ME AAP HI KI JHANKI HAI, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!

JAB KABHI KAHIN AISA MOD AATA HAI,
JAB CHALNA MUSHKIL SA LAGTA HAI!
SAARI URJA LAGANE KE BAAD BHI,
AAGE BADHNA MUSHKIL SA LAGTA HAI!

AANKH MOOND KAR BAS YEH SOCHTA HUN,
KI AAP HOTE TO KYA KARTE, PAPA
AUR JO MAN ME AAYE WOH KAR DETA,
PHIR SAFAR SUHANA SA LAGTA HAI!

MAIN GIRTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN UTHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN AAP HI KA AKS HUN, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!

MERE SAATH ME HO, MERE PAAS ME HO,
AAP MERI HAR SAANS ME HO!
ANDHERE MEIN JAB JEEVAN HO SARA,
EK AAP HI MERI HAR AAS ME HO!

AAP KI HAR BAAT YAAD HAI MUJHE,
AAP HAR PAL MERI YAAD ME HO!
BICHHAD GAYE HUM BARSO PAHLE,
PAR AAP KAL MEIN THE, AAP AAJ MEIN HO!

MAIN RUKTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN CHALTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE HAR KADAM ME AAP KI NISHANI HAI, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!

MAIN SOCHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN BOLTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE HAR SOCH ME AAP HI KI JHANKI HAI, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!

पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था