श्रृंगार
स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा,
मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा
हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा,
ऐ प्याज, धरती से तू तब उभरा होगा
हास्य
आवेश में आकर पति बोला पत्नी से,
छुटकारा मुझे कब मिलेगा तुझ से?
ले लूँ अगर उलटे वह साथ फेरे,
क्या हो जाएँगे शादी के दिन पूरे?
पत्नी बोली किस बात की है फ़िक्र तुमको,
चलो सूझ रहा एक हल मुझ को
दस बोरी प्याज जो लाई थी दहेज में,
वापस करो तो चली जाती हूँ अभी मैं
पति बोला जितना तू मुझ को रुलाई है,
प्याज मे भी वह बात नहीं
दस बोरी प्याज तेरे मुँह पे मार देता,
पर इतनी मेरी औकात नहीं
अद्भुत
फिर से सुर और असूरों मे जंग होता,
आज अगर समुद्र मंथन होता
अमृत छोड़ प्याज लेकर एक असूर भागता,
उसी वजह से उसका सिर छेदन होता
शांत
बहुत दिनों से रसोई मे जाकर वह रोई नहीं,
ऐसा नहीं कि हमारे बीच कोई खिटपिट हुई नहीं
मेरी शादी की कविता में जो शांत रस का प्रभाव है,
वह इसलिए क्यूंकी रसोई मे आजकल प्याज का अभाव है
रौद्र
अमीर ग़रीब हर कोई मेरे सामने एक सा था,
स्वाद सब के पकवान को एक समान मैं देता था
चंद लोगों के लोभ ने पर मचा दिया है बदहाल,
ग़रीब हो गया मुझसे दूर, चोर हो रहे मालामाल
वीर
हूँ प्याज मैं सुनलो,
किस तेज़ का हूँ वंशज मैं
रुला सकता हूँ खुद कटके,
कट सकता हूँ हस हसके
करुणा
काटते थे मुझको रो कर भी,
खुश होते थे सब बाँट मुझे
हाय कैसा समय यह आ गया
जो तरस रहे सब दाँत मुझे
भयानक
इक ऐसा क्या मंज़र होगा,
स्थिति और बदतर होगा!
जो अभी निगल चुका हूँ मैं,
क्या प्याज आखरी वह होगा?
विभत्स
जाने ये किसका दुकान है,
यह प्याज है या कोई और सामान है
इतनी जमाखोरी जो की है कोई,
छी! वह कैसा इनसान है!!
स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा,
मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा
हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा,
ऐ प्याज, धरती से तू तब उभरा होगा
हास्य
आवेश में आकर पति बोला पत्नी से,
छुटकारा मुझे कब मिलेगा तुझ से?
ले लूँ अगर उलटे वह साथ फेरे,
क्या हो जाएँगे शादी के दिन पूरे?
पत्नी बोली किस बात की है फ़िक्र तुमको,
चलो सूझ रहा एक हल मुझ को
दस बोरी प्याज जो लाई थी दहेज में,
वापस करो तो चली जाती हूँ अभी मैं
पति बोला जितना तू मुझ को रुलाई है,
प्याज मे भी वह बात नहीं
दस बोरी प्याज तेरे मुँह पे मार देता,
पर इतनी मेरी औकात नहीं
अद्भुत
फिर से सुर और असूरों मे जंग होता,
आज अगर समुद्र मंथन होता
अमृत छोड़ प्याज लेकर एक असूर भागता,
उसी वजह से उसका सिर छेदन होता
शांत
बहुत दिनों से रसोई मे जाकर वह रोई नहीं,
ऐसा नहीं कि हमारे बीच कोई खिटपिट हुई नहीं
मेरी शादी की कविता में जो शांत रस का प्रभाव है,
वह इसलिए क्यूंकी रसोई मे आजकल प्याज का अभाव है
रौद्र
अमीर ग़रीब हर कोई मेरे सामने एक सा था,
स्वाद सब के पकवान को एक समान मैं देता था
चंद लोगों के लोभ ने पर मचा दिया है बदहाल,
ग़रीब हो गया मुझसे दूर, चोर हो रहे मालामाल
वीर
हूँ प्याज मैं सुनलो,
किस तेज़ का हूँ वंशज मैं
रुला सकता हूँ खुद कटके,
कट सकता हूँ हस हसके
करुणा
काटते थे मुझको रो कर भी,
खुश होते थे सब बाँट मुझे
हाय कैसा समय यह आ गया
जो तरस रहे सब दाँत मुझे
भयानक
इक ऐसा क्या मंज़र होगा,
स्थिति और बदतर होगा!
जो अभी निगल चुका हूँ मैं,
क्या प्याज आखरी वह होगा?
विभत्स
जाने ये किसका दुकान है,
यह प्याज है या कोई और सामान है
इतनी जमाखोरी जो की है कोई,
छी! वह कैसा इनसान है!!
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