आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था
कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था
लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर
राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था
कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था
लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर
राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था
किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...
No comments:
Post a Comment