Saturday, November 17, 2012

रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?

















तू ठंडक दे रूह को, फिर भी  
तू शुकून दे मन को, फिर भी   
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी 
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  

थोडा सा रोशनी तुझे देकर 
चाँद क्यूँ इतराता है? 
दूर कोई तारा टिम-टिमाकर 
तुझे क्यूँ चिढाता है?
   
है गवाह तू इतने किस्सों का 
नशे का, चोरी का, गुनाह का  
के भूल जाते सब ये के
तू वजह भी है सुबह का

है इतनी ख़ामोशी तुझ में, फिर भी
है इतनी मदहोशी तुझ में, फिर भी 
तेरे साये में प्यार पनपता है, फिर भी 
तेरे आने से जहां महकता है, फिर भी  
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  
 
तू ठंडक दे रूह को, फिर भी  
तू शुकून दे मन को, फिर भी   
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी 
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  

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Wednesday, June 20, 2012

चाँद की शिकायत

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

बेसब्र मैं और यह मुझे
और बेचैन कराता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

रोज मैं इससे मिन्नतें किया करता हूँ;
महोब्बत की दुहाई भी दिया करता हूँ;
समझ सके मेरी हालत को इसलिए,
कुछ अफ़साने सुना दिया करता हूँ!

पर यह मेरे जज्बातों का,
बेझिझक मजाक उडाता है;
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

अब नहीं होता इंतज़ार रे;
बर्दाश्त की हद हुआ  पार  रे
सावन तो आया पर आँखें हैं प्यासी,
दिल में उदासी बरकरार है!

बादलों में खेल लुक्काछुप्पी,
मायूसी और बढाता है!
महीने में सिर्फ एक ही बार तो,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा  दिखाता  है!

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Saturday, April 21, 2012

साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!


एक  सोच  में  डूबा  था  मैं  कई  दिनों  से 
के  विशाल  नाराज़  क्यूँ  है  मुझ  से? 
उस  सोच  से  निकला  नहीं  था  के  प्रशांत  भी  खफ़ा  हो  गया; 
ज़हन  में  इक  यही  बात  थी  कि  ऐसा क्या  खता  हो गई! 
आज  जाके  मुझे  पता  चला  के  उनके  नाराज़गी  की वजह  क्या  थी; 
विशाल  को  बिसाल  और  प्रशांत  को  प्रोसांत  जो  मैं  कह  रहा  था! 
बुरा  ना मानो  दोस्तों  के  मैं  यह  गलती  जान  बुझके  ना  किया  करता  था; 
कोई  मेरा  नाम  पूछे तो  मैं  भी  'गणेश ' नहीं  'गणेस' कहा  करता  था! 

पहले  मैं  नाराज़  के  वजाय नाराज  हुआ  करता  था; 
पहले  मैं  ऐश  के  जगह  एस  किया  करता  था; 
पहले  मुझे  शर्म  नहीं  आती  थी , पर  मैं  सर्माता  था; 
पहले  मैं  कैश के  जगह  लोगों  को  केस  दिया  करता  था! 

हुए  कितने  दोस्त  बेवफा , हुए  कितने  अपने  पराये; 
छूटा साथ  कितने  साथियों  का , छूटे  कितने  ख़ुशी  के  साये; 
बस  एक तू  है  जिसने  मुझे  दिया  हमेशा सहारा; 
मेरी  मातृभाषा  तुने  मुझे  कभी  ना  सुधारा; 
मैं  जैसा  हूँ  मुझे  वैसे  ही  अपनाया; 
मेरे  सहुलियत  के  हिसाब  से  खुद को  बनाया!

शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरा इस बात के लिए;
साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!  


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Sunday, January 15, 2012

आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!

किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

दिल में एक आरजू हमेशा बाकि रहती है;
यादों में ख्वाबों के भी झांकी रहती है;
इनकार में भी गुंजाईश हाँ की रहती है;

हर उम्मीद से उम्मीद बरक़रार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

कुछ ख्वाहिशें पूरे न हो सके तो;
कुछ बंधन टूट के न जुड़ सके तो;
कुछ फासले यूँ ही न घट सके तो;

इंसान को इंसान ही नागवार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

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Sunday, December 4, 2011

तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती!


प्यार भी हैरान है कि मैं तुझे  इतना प्यार क्यूँ करता हूँ !
तू मेरे पास नहीं तो कैसे तुझ से रु-ब-रु होता हूँ !

     
महोब्बत की कसम कि तेरे मिलने से पहले ये आलम था !
महोब्बत क्या होती है यह मुझे नहीं मालूम था ?!


एक तेरा ही अरमान, एक तेरी ही आरजू, जुस्तजू !
                    बाकि जहां में मुझे कोई भी चीज़ नहीं जचती !
गर जहाँ तक मेरी नज़र जाये वह सब कुछ मेरा होता !
                   तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती !



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Friday, October 14, 2011

मन ऊब जाता है अक्सर ऐसे किस्सों से


देखा  किये, मिलना  हुआ, समझे  भी  एक  दुसरे  को  हम, 
लगा  मैं  उनकी  और वह  मेरी   ज़रुरत  हो  जैसे! 
दिन  बीते,  महीने  बीते , फिर  आयी  एक  शाम और वह  पल,
जो  फिर से अनजान  बनाने   का  महूरत  हो  जैसे!

मन  ऊब  जाता  है  अक्सर  ऐसे  किस्सों  से, 
बेमतलबी  बातों  से,  मतलबी  रिश्तों  से!

DEKHA KIYE, MILNA HUA, SAMJHE BHI EK DUSRE KO HUM,
LAGA MAIN UNKI AUR WOH MERI ZAROORAT HO JAISE!
DIN BEETE, MAHINE BEETE, PHIR AAYI EK SHAAM AUR WOH PAL,
JO PHIR SE ANJAAN BANANE KA MAHURAT HO JAISE!

MAN OOB JATA HAI AKSHAR AISE KISSON SE,
BEMATLABI BATON SE, MATLABI RISHTON SE!

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पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था