तू शुकून दे मन को, फिर भी
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ?
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ?
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?
तू ठंडक दे रूह को, फिर भी
तू शुकून दे मन को, फिर भी
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ?
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?
लेखक: महाराणा गणेश
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