Saturday, April 21, 2012

साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!


एक  सोच  में  डूबा  था  मैं  कई  दिनों  से 
के  विशाल  नाराज़  क्यूँ  है  मुझ  से? 
उस  सोच  से  निकला  नहीं  था  के  प्रशांत  भी  खफ़ा  हो  गया; 
ज़हन  में  इक  यही  बात  थी  कि  ऐसा क्या  खता  हो गई! 
आज  जाके  मुझे  पता  चला  के  उनके  नाराज़गी  की वजह  क्या  थी; 
विशाल  को  बिसाल  और  प्रशांत  को  प्रोसांत  जो  मैं  कह  रहा  था! 
बुरा  ना मानो  दोस्तों  के  मैं  यह  गलती  जान  बुझके  ना  किया  करता  था; 
कोई  मेरा  नाम  पूछे तो  मैं  भी  'गणेश ' नहीं  'गणेस' कहा  करता  था! 

पहले  मैं  नाराज़  के  वजाय नाराज  हुआ  करता  था; 
पहले  मैं  ऐश  के  जगह  एस  किया  करता  था; 
पहले  मुझे  शर्म  नहीं  आती  थी , पर  मैं  सर्माता  था; 
पहले  मैं  कैश के  जगह  लोगों  को  केस  दिया  करता  था! 

हुए  कितने  दोस्त  बेवफा , हुए  कितने  अपने  पराये; 
छूटा साथ  कितने  साथियों  का , छूटे  कितने  ख़ुशी  के  साये; 
बस  एक तू  है  जिसने  मुझे  दिया  हमेशा सहारा; 
मेरी  मातृभाषा  तुने  मुझे  कभी  ना  सुधारा; 
मैं  जैसा  हूँ  मुझे  वैसे  ही  अपनाया; 
मेरे  सहुलियत  के  हिसाब  से  खुद को  बनाया!

शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरा इस बात के लिए;
साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!  


अपना अनुभव ज़रूर बतायें


3 comments:

  1. I would dedicate this poetry to Yogeeta (one of my good friends) who always tried to correct my pronunciation constructively and helped me speak better Hindi and English.

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  2. Awwww thank you ganesh :) I m so touched with this cute gesture of yours :)

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किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...