जान मेरी, यह चाँद मुझे
देख कितना सताता है!महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!
बेसब्र मैं और यह मुझे
और बेचैन कराता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!
रोज मैं इससे मिन्नतें किया करता हूँ;
महोब्बत की दुहाई भी दिया करता हूँ;
समझ सके मेरी हालत को इसलिए,
कुछ अफ़साने सुना दिया करता हूँ!
पर यह मेरे जज्बातों का,
बेझिझक मजाक उडाता है;
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!
जान मेरी, यह चाँद मुझे
देख कितना सताता है!महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!
अब नहीं होता इंतज़ार रे;
बर्दाश्त की हद हुआ पार रे
सावन तो आया पर आँखें हैं प्यासी,
दिल में उदासी बरकरार है!
बादलों में खेल लुक्काछुप्पी,
मायूसी और बढाता है!
महीने में सिर्फ एक ही बार तो,
तेरा चेहरा दिखाता है!
जान मेरी, यह चाँद मुझे
देख कितना सताता है!महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!
लेखक: महाराणा गणेश
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