Saturday, April 21, 2012

साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!


एक  सोच  में  डूबा  था  मैं  कई  दिनों  से 
के  विशाल  नाराज़  क्यूँ  है  मुझ  से? 
उस  सोच  से  निकला  नहीं  था  के  प्रशांत  भी  खफ़ा  हो  गया; 
ज़हन  में  इक  यही  बात  थी  कि  ऐसा क्या  खता  हो गई! 
आज  जाके  मुझे  पता  चला  के  उनके  नाराज़गी  की वजह  क्या  थी; 
विशाल  को  बिसाल  और  प्रशांत  को  प्रोसांत  जो  मैं  कह  रहा  था! 
बुरा  ना मानो  दोस्तों  के  मैं  यह  गलती  जान  बुझके  ना  किया  करता  था; 
कोई  मेरा  नाम  पूछे तो  मैं  भी  'गणेश ' नहीं  'गणेस' कहा  करता  था! 

पहले  मैं  नाराज़  के  वजाय नाराज  हुआ  करता  था; 
पहले  मैं  ऐश  के  जगह  एस  किया  करता  था; 
पहले  मुझे  शर्म  नहीं  आती  थी , पर  मैं  सर्माता  था; 
पहले  मैं  कैश के  जगह  लोगों  को  केस  दिया  करता  था! 

हुए  कितने  दोस्त  बेवफा , हुए  कितने  अपने  पराये; 
छूटा साथ  कितने  साथियों  का , छूटे  कितने  ख़ुशी  के  साये; 
बस  एक तू  है  जिसने  मुझे  दिया  हमेशा सहारा; 
मेरी  मातृभाषा  तुने  मुझे  कभी  ना  सुधारा; 
मैं  जैसा  हूँ  मुझे  वैसे  ही  अपनाया; 
मेरे  सहुलियत  के  हिसाब  से  खुद को  बनाया!

शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरा इस बात के लिए;
साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!  


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Sunday, January 15, 2012

आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!

किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

दिल में एक आरजू हमेशा बाकि रहती है;
यादों में ख्वाबों के भी झांकी रहती है;
इनकार में भी गुंजाईश हाँ की रहती है;

हर उम्मीद से उम्मीद बरक़रार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

कुछ ख्वाहिशें पूरे न हो सके तो;
कुछ बंधन टूट के न जुड़ सके तो;
कुछ फासले यूँ ही न घट सके तो;

इंसान को इंसान ही नागवार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

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Sunday, December 4, 2011

तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती!


प्यार भी हैरान है कि मैं तुझे  इतना प्यार क्यूँ करता हूँ !
तू मेरे पास नहीं तो कैसे तुझ से रु-ब-रु होता हूँ !

     
महोब्बत की कसम कि तेरे मिलने से पहले ये आलम था !
महोब्बत क्या होती है यह मुझे नहीं मालूम था ?!


एक तेरा ही अरमान, एक तेरी ही आरजू, जुस्तजू !
                    बाकि जहां में मुझे कोई भी चीज़ नहीं जचती !
गर जहाँ तक मेरी नज़र जाये वह सब कुछ मेरा होता !
                   तब भी मेरी निगाहें तुझ से नहीं हटती !



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Friday, October 14, 2011

मन ऊब जाता है अक्सर ऐसे किस्सों से


देखा  किये, मिलना  हुआ, समझे  भी  एक  दुसरे  को  हम, 
लगा  मैं  उनकी  और वह  मेरी   ज़रुरत  हो  जैसे! 
दिन  बीते,  महीने  बीते , फिर  आयी  एक  शाम और वह  पल,
जो  फिर से अनजान  बनाने   का  महूरत  हो  जैसे!

मन  ऊब  जाता  है  अक्सर  ऐसे  किस्सों  से, 
बेमतलबी  बातों  से,  मतलबी  रिश्तों  से!

DEKHA KIYE, MILNA HUA, SAMJHE BHI EK DUSRE KO HUM,
LAGA MAIN UNKI AUR WOH MERI ZAROORAT HO JAISE!
DIN BEETE, MAHINE BEETE, PHIR AAYI EK SHAAM AUR WOH PAL,
JO PHIR SE ANJAAN BANANE KA MAHURAT HO JAISE!

MAN OOB JATA HAI AKSHAR AISE KISSON SE,
BEMATLABI BATON SE, MATLABI RISHTON SE!

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Thursday, September 22, 2011

गम में गहराई तो होगी कम

हर  आलम  को  जो  न करना  है  बयां
हर  बेवसी  जो  न  छोड़े  निशान 
मजबूरियों का  न  हो  जो  कोई  दास्ताँ 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 
 
आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

कहने  को  तो  मैं  कुछ  भी  कह लूँ  
वजह  पर  कोई  न  दे  पाऊँ  शायद 
करने  को  है  तय  मंजिलें  कई 
एक  कदम  भी  न  जा  पाऊँ शायद

अरमान  खिलें  हैं  गुलशन  की  तरह 
करना  पर  है  खुशबु  बे-असर 
पायेगा  तूफ़ान  जो  ज़िक्र  भी  उसका 
आ  जायेगा  करने  तबाह  बे-सबर 

दिल  में  ही  रहे  जो  दिल  की  सदा
न  होगा  कोई  जो  मुझ  से  खफा 
मांगे  न  कोई  जो  मुझ  से  वफ़ा                 

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ 

आहें  न  भर  पाए  जो  यह  दुनियां 
तरस  न  खा  पाए  जो  यह  जहाँ 
अफवाहों  को  मिले  न  जो  कोई  मकां

गम  में  गहराई  तो  होगी  कम 
अगर  मैं  रख  लूँ  खामोश  जुबाँ

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Tuesday, August 23, 2011

छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?

न  जाने  क्यूँ  दिल  बुलाये  तुमको  बेसबर
छुपी  हो  तुम  इस  तस्वीर  में  क्यूँ मगर? 


सोचता  हूँ  क्या  कुछ  गुफ्तगू  हो सकती  है 
पर  जाने दो,  इस दीद  से  ही  जान  अटकी  है
                तो  क्या होगा  गर  तुम हो जाओ  रु-ब-रु
                बेहोशी  का  आलम  होगा, जान पड़ती  है
 

कहना  है कुछ पर, तुम बुरा  मान  जाओ अगर 
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
 

न जाने क्यूँ दिल बुलाये तुमको बेसबर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?

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Sunday, August 21, 2011

कैसी भी हालात में अपने दामन को साफ़ रखें!

खुद  के  अधिकारों  की  रक्षा  करने  की जज़्बात  रखें!

            सच्चाई  के लिए  हमेशा  सही  हाथों  में  हाथ  रखें!

भ्रष्टाचार  से  लढते हुए  चलो  आज  यह  कसम  खाए,
              
           कैसी  भी  हालात  में हम  अपने  दामन  को  साफ़  रखें!

KHUD KE ADHIKARON KI RAKSHA KARNE KI JAZBAAT RAKHEN!
SACHCHAI KE LIYE HAMESHA SAHI HATHO MEIN HAATH RAKHEN!
BHRASHTACHAR SE LADHTE HUYE CHALO AAJ YAH KASAM KHAYE,
KAISI BHI HALAAT MAIN HUM APNE DAAMAN KO SAAF RAKHEN!

पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था