हर आलम को जो न करना है बयां
हर बेवसी जो न छोड़े निशान
मजबूरियों का न हो जो कोई दास्ताँ
गम में गहराई तो होगी कम
अगर मैं रख लूँ खामोश जुबाँ
आहें न भर पाए जो यह दुनियां
तरस न खा पाए जो यह जहाँ
अफवाहों को मिले न जो कोई मकां
गम में गहराई तो होगी कम
अगर मैं रख लूँ खामोश जुबाँ
कहने को तो मैं कुछ भी कह लूँ
वजह पर कोई न दे पाऊँ शायद
करने को है तय मंजिलें कई
एक कदम भी न जा पाऊँ शायद
अरमान खिलें हैं गुलशन की तरह
करना पर है खुशबु बे-असर
पायेगा तूफ़ान जो ज़िक्र भी उसका
आ जायेगा करने तबाह बे-सबर
दिल में ही रहे जो दिल की सदा
न होगा कोई जो मुझ से खफा
न होगा कोई जो मुझ से खफा
मांगे न कोई जो मुझ से वफ़ा
गम में गहराई तो होगी कम
अगर मैं रख लूँ खामोश जुबाँ
आहें न भर पाए जो यह दुनियां
तरस न खा पाए जो यह जहाँ
अफवाहों को मिले न जो कोई मकां
गम में गहराई तो होगी कम
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