न जाने क्यूँ दिल बुलाये तुमको बेसबर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
सोचता हूँ क्या कुछ गुफ्तगू हो सकती है
पर जाने दो, इस दीद से ही जान अटकी है
तो क्या होगा गर तुम हो जाओ रु-ब-रु
बेहोशी का आलम होगा, जान पड़ती है
कहना है कुछ पर, तुम बुरा मान जाओ अगर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
न जाने क्यूँ दिल बुलाये तुमको बेसबर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
सोचता हूँ क्या कुछ गुफ्तगू हो सकती है
पर जाने दो, इस दीद से ही जान अटकी है
तो क्या होगा गर तुम हो जाओ रु-ब-रु
बेहोशी का आलम होगा, जान पड़ती है
कहना है कुछ पर, तुम बुरा मान जाओ अगर
छुपी हो तुम इस तस्वीर में क्यूँ मगर?
न जाने क्यूँ दिल बुलाये तुमको बेसबर
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