Tuesday, September 30, 2014

उफ्फ, यह तेरी झूठी मुस्कान



मासूमियत से कोसो दूर, समेटी अभिमान
धड़कनो में पर भर देती है प्राण
तेरी झूठी मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान
आँखों में चमक, गालों में उठान
दुनिया की उठापटक से अंजान
तेरी झूठी मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान

मैं जानता हूँ यह नकली है
मैं जानता हूँ यह खोखली है
मेरे आँखों को पर खूब भाती है
इसिसे माहॉल में रोशनी है

बिन इसके, बाद का हर पल कच्चा लगता है
तेरे चेहरे से झाँकता कोई बच्चा लगता है
झूठी ही सही तू मुस्कुराती रहे
यह झूठापन तुझी पे अच्छा लगता है

भले मेरी रहे तुझसे कई गुमान
अड़चन है, पर बन गयी है पहचान
तेरी झूठी मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान
मेरी कविता करे तेरा सम्मान
दिल में उतरने का सुनाके फरमान
उफ्फ, यह तेरी झूठी मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान

Sunday, September 14, 2014

बंजारा मन बिचलित हुआ जाए

श्रम का उचित जो मोल मिल ना पाए

दक्षता का कद्र जो कोई कर ना पाए

एक नये ठिकाने की तलाश में

बंजारा मन बिचलित हुआ जाए

Sunday, August 3, 2014

गब्बर: मैं बड़ा डाकू हूँ या वह है

कितने  आदमी थे?

कितने  आदमी थे? 

कितने  आदमी थे, पर कोई न आया 

इंसानियत तो किसी में ना समाया 

रोती रही वह, पिलाघति रही वह 

कुछ शैतानों ने  उसको जलाया

दहेज़ के खातिर जल गयी वह 

जाने कब से है जल रही वह

तीर हमारे जो दिल में लगी है

सदियों से हमको है खल रही वह

सदियों से इसको जो रोक न पाया

कहता है पर "भागो गब्बर आया"

अरे, मैं बड़ा डाकू हूँ या वह है

जिसने ज़मीर अपनी बेचकर खाया

Wednesday, July 16, 2014

चलो, देश नये से बनाते हैं

एक बीज बोया थाखाद पानी मुहया थाकुछ कमी पर रह गयीबीज वृक्ष नहीं बन पाया थापुरानी भूल सुधारते हैंनया एक पौधा उगाते है              चलो, देश नये से बनाते हैंईंट से ईंट जोड़ा थाजर्जर दीवार तोड़ा थाबुनियाद कमज़ोर रह गयीमकान अधूरा पड़ा थाकुछ गज ज़मीन और खोदते हैंबुनियाद पक्की बनाते हैं           चलो, देश नये से बनाते हैंलफ्ज़ से लफ्ज़ जोड़ा थापर शेर अधूरा पड़ा थाकाफिया मिलने की देरी थीअधूरी वह शायरी थीचंद लफ्ज़ और जोड़ते हैंयह नज़्म गुनगुनाते है           चलो, देश नये से बनाते हैंयह देश अभी तो युवा हैआगे बढ़ने की क्षुधा हैकुछ करने की जो ठानेंगेपूरा कर के ही मानेंगेबढ़ना आगे, नहीं रुकना हैछोटा ना कोई भी सपना हैहर सपने को सजाते हैं           चलो, देश नये से बनाते हैंनया एक पौधा उगते हैंबुनियाद पक्की बनाते हैंयह नज़्म गुनगुनाते हैंहर सपने को सजाते हैं           चलो, देश नये से बनाते हैं

Friday, July 4, 2014

रखना यह बरकरार



झर झर जो बरसी बरखा 
कल कल जो करके नाद 
धरणी है हर्षमय 
हर्षित हर मन है आज 

तेरी कृपा के बल पे 
खुश है, बरखा, संसार 
बिनती बस इतनी है कि 
            रखना यह बरकरार  
            रखना यह बरकरार 
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JHAR JHAR JO BARSI BARKHA

            KAL KAL JO KARKE NAAD
DHARNI HAI HARSHMAY
HARSHIT HAR MAN HAI AAJ

TERI KRUPA KE BAL PE
            KHUSH HAI, BARKHA, SANSAAR
BINTI BAS ITNI HAI KI
            RAKHNA YEH BARKARAR
RAKHNA YEH BARKARAR
 

  

पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था