मासूमियत से कोसो
दूर, समेटी अभिमान
धड़कनो में पर
भर देती है
प्राण
तेरी झूठी
मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान
आँखों में चमक,
गालों में उठान
दुनिया की उठापटक
से अंजान
तेरी झूठी
मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान
मैं जानता हूँ यह
नकली है
मैं जानता हूँ यह
खोखली है
मेरे आँखों को पर
खूब भाती है
इसिसे माहॉल में रोशनी
है
बिन इसके, बाद का
हर पल कच्चा
लगता है
तेरे चेहरे से झाँकता
कोई बच्चा लगता
है
झूठी ही सही
तू मुस्कुराती रहे
यह झूठापन तुझी पे
अच्छा लगता है
भले मेरी रहे
तुझसे कई गुमान
अड़चन है, पर
बन गयी है
पहचान
तेरी झूठी
मुस्कान, तेरी झूठी मुस्कान
मेरी कविता करे तेरा
सम्मान
दिल में उतरने
का सुनाके फरमान
उफ्फ, यह तेरी
झूठी मुस्कान, तेरी झूठी
मुस्कान
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