Saturday, January 3, 2015

मलाल रह जाएगा अगर

थाम के उंगली मेरी तू चला है

मेरे कंधो की सवारी भी तुझे मिली है

जब जब गिरा तू उठाया है मैंने 

भटका तू जब राह दिखाया है मैंने


है खुशी यह मुझको कि मैं तेरे सफ़र मे काम आया

मलाल रह जाएगा अगर तू मेरी उंगली ना छोड़ पाया


मैं अब हूँ पर मैं रहूँगा कब तक?

तेरे सवालों को हल मैं करूँगा कब तक?

मेरे बारे मे तेरा नज़रिया बदलेगा कब?

तेरी ज़िंदगी मे मेरा दखल रुकेगा कब?


मैं साथ हूँ पर अगर तू मेरा बन के रहा साया 

मलाल रह जाएगा अगर तू मेरी उंगली ना छोड़ पाया


पल पल तू देखे क्यूँ मेरी ही ओर?

चलेगा कब तुझ पे खुद का ही ज़ोर?

यह सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा?

मेरे पास आके तू यूँ ही रोता रोहेगा?


मेरी सोहबत मे लग रहा तू खुद को ना खोज पाया

मलाल रह जाएगा अगर तू मेरी उंगली ना छोड़ पाया





No comments:

Post a Comment

पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था