Tuesday, January 6, 2015

स्पर्श


उछाले जब तू कदमों को हर्ष मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं

हालांकि तू है उस पार मैं इस पक्ष मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं


तेरा हर स्पर्श मुझ मे एक मोती को जनम देता है

तेरे होने का आभास मुझ मे खुदा का भरम देता है

वह एक क्षण मैं इस दुनिया का नहीं रह जाता

तेरी माँ का चेहरा भी बिजली सा चमक देता है


शांति मिले मन को संघर्ष मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं

उछाले जब तू कदमों को हर्ष मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं


क्या मैं कहूँ कि मैं खुद को भूल जाता हूँ

या फिर यह कि मैं होके भी नहीं होता हूँ

शब्द भावनाओं का प्रतिबिंब बने तो कहूँ

मैं मुझमे भी होता हूँ तुझमे भी होता हूँ


चोट ज्यूँ सहारा खोजे बर्फ मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं

उछाले जब तू कदमों को हर्ष मे

अनुभव करूँ तेरा अनुपम स्पर्श मैं




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पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था