आम के बगीचे
में घूम रहा था
देखा, पेड़
से एक आम झूल रहा था
छोटा था मैं
पर हाथ पहुँच रहा था
तोड़ने से पहले
एक बार सोचा था
आम पर मेरा अधिकार कोई ना था
लोभ था भारी पर मेरे सोच पर,
भागा था मैं
आम को तोड़ कर
चोरी से जब
किसी और का कुछ खाया था
भ्रस्टाचार,
क्या तब तू मुझ में समाया था?
जितना भी आता था
सब लिख डाला था
सोचा किसी को
ज़रा पूछ लेता हूँ,
पूछ कर थोड़ा कुछ और लिख
देता हूँ
देखा एक लड़का कर रहा था नक़ल
कहा दे मुझे वरना जानेगा मास्टर
दिया पर्चा मुझे वह डर कर
ख़ुशी
ख़ुशी किया मैंने नक़ल
इस तरह जब चोरी
कर के अंक कमाया था
भ्रस्टाचार,
क्या तब तू मुझ में समाया था?
नाचा था मैं
कोई पागल की तरह
दोस्त की शादी
थी इसकी वजह
दोस्त बहुत
खुश था और हम भी
दहेज़ में मिली थी गाड़ी और रकम भी
सोचा था कभी
मैं भी शादी करूँगा
दहेज में खूब
धन माँग आऊँगा
बिना मेहनत
के धनी बन जाऊंगा
दूसरे का धन
देख जब मैं ललचाया था
भ्रस्टाचार, क्या तब तू
मुझ में समाया था?
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