Friday, April 8, 2011

आज़ादी की ख्वाहिश आज भी है!




1 comment:

  1. Hmm seems the fever of anna hazare's campaign has imbibed itself in your lyrical nerves. Dats somehow i do interpret your poem which wants "aazadi" 4rm d corrupt practices and equally wishes 2 get fulfilled 4rm every sector! impressive lines as usual!

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...