Saturday, May 25, 2019

रुख़ हवा का तय करता है

रुख़ हवा का तय करता है मैं किधर जाऊं
फिर क्या हुआ जो खुद की नज़र से उतर जाऊं
भीड़ में हूँ मैं बस एक भेड़
सब जिधर जाएँ, मैं भी उधर जाऊं

पानी सा हूँ, रंग नहीं है  मेरा कोई
जो मिले, घोल के खुद में नीचे गुज़र जाऊं

Friday, April 26, 2019

संगीन समय चुनाव का

संगीन समय चुनाव का 
आप मनाओ खैर 
नहीं किसी से दोस्ती 
नहीं किसी से बैर 

कर लिए होते

पिटारा वादों का खोलने से पहले 
काम कुछ चंद तो कर लिए होते 
नया अकाउंट खोलना चाहते हो 
पुराने को बंद तो कर लिए होते 

क्या कहोगे जनता से जब जाओगे? 
बहानों का प्रबंध तो कर लिए होते 

Monday, October 22, 2018

यह चेहरा


मुझको मुझसे मिलाती है,
नये कुछ सपने दिखाती है
धुन कोई प्यारा सुनाती है
                        यह चेहरा

अंदाज़--सादगी सिखाती है
मुझमे आशिकी जगाती है
बिन कहे सब कह जाती है
यह चेहरा

कहना चाहता हूँ, पर रोकती है
चुप जो रहूं, तो टोकती है
दिल--दिमाग़ को झक झोरती है
यह चेहरा

आईना है सच दिखाती है
हसीन अफ़साने सुनाती है
ख्वाब में अक्सर आ जाती है
यह चेहरा

मुद्दत के बाद आती है
मुझे शायर बनाती है
महीनो औुझल हो जाती है
यह चेहरा

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Friday, August 3, 2018

कविता


भावना में जब तुम होती हो आधी अधूरी
उत्सुकता रहती है देखने को तुम्हे पूरी
ना तुम आती हो पूर्ण स्वरूप में ना नींद
कविता, तुम मुझसे मिलने से सकुचाती क्यूँ हो?

सोच की गहराई तक जाके मेरी परीक्षा लेती हो
मेरी अपूर्णता का मुझे आभास कराती हो
ना तुम बनती हो सोच का प्रतिबिंब ना सपने
कविता, तुम इतने धीरे धीरे आती क्यूँ हो?

एक तरफ हँसती प्रेरणा है एक तरफ रूठी हो तुम
ओझल होती प्रेरणा जब तक आती हो तुम
ना तुम रह पाती भावना में ना प्रेरणा
कविता, तुम प्रेरणा से इतनी लज्जाति क्यूँ हो?

तुमसे में समर्पण मांगू तो ना कहती हो
तुम पर मैं समर्पित हो जाऊँ तो ना कहती हो
ना मैं तुम्हारे बिना रह पाऊँ ना तुम्हारे साथ
कविता, तुम इस समाज की भाँति क्यूँ हो?

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मुसाफिर मैं

वह कास्ती सा, जो अंजान अपने साहिल से
मुसाफिर मैं, बे-खबर अपनी मंज़िल से
चलना मेरा काम, रास्ते मेरे साथी
क्या लेना मुझे, दुनिया, तेरी महफ़िल से

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पड़ोसी

आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था