Friday, August 3, 2018

कविता


भावना में जब तुम होती हो आधी अधूरी
उत्सुकता रहती है देखने को तुम्हे पूरी
ना तुम आती हो पूर्ण स्वरूप में ना नींद
कविता, तुम मुझसे मिलने से सकुचाती क्यूँ हो?

सोच की गहराई तक जाके मेरी परीक्षा लेती हो
मेरी अपूर्णता का मुझे आभास कराती हो
ना तुम बनती हो सोच का प्रतिबिंब ना सपने
कविता, तुम इतने धीरे धीरे आती क्यूँ हो?

एक तरफ हँसती प्रेरणा है एक तरफ रूठी हो तुम
ओझल होती प्रेरणा जब तक आती हो तुम
ना तुम रह पाती भावना में ना प्रेरणा
कविता, तुम प्रेरणा से इतनी लज्जाति क्यूँ हो?

तुमसे में समर्पण मांगू तो ना कहती हो
तुम पर मैं समर्पित हो जाऊँ तो ना कहती हो
ना मैं तुम्हारे बिना रह पाऊँ ना तुम्हारे साथ
कविता, तुम इस समाज की भाँति क्यूँ हो?

YouTube Channel

No comments:

Post a Comment

किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...