भावना में
जब तुम होती हो
आधी अधूरी
उत्सुकता
रहती है देखने को
तुम्हे पूरी
ना तुम आती हो
पूर्ण स्वरूप में ना नींद
कविता,
तुम मुझसे मिलने से सकुचाती क्यूँ हो?
सोच
की गहराई तक जाके मेरी
परीक्षा लेती हो
मेरी
अपूर्णता का मुझे आभास
कराती हो
ना तुम बनती हो
सोच का प्रतिबिंब ना
सपने
कविता,
तुम इतने धीरे धीरे
आती क्यूँ हो?
एक तरफ हँसती प्रेरणा है एक तरफ
रूठी हो तुम
ओझल
होती प्रेरणा जब तक आती
हो तुम
ना तुम रह पाती
भावना में ना प्रेरणा
कविता,
तुम प्रेरणा से इतनी लज्जाति क्यूँ हो?
तुमसे में समर्पण
मांगू तो ना कहती हो
तुम पर मैं
समर्पित हो जाऊँ तो ना कहती हो
ना मैं तुम्हारे
बिना रह पाऊँ ना तुम्हारे साथ
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