Friday, April 8, 2011
Saturday, April 2, 2011
कुछ बात अनकही..
मैं तुझे दूर तक देखना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से मेरे पलकें गिरे नहीं
के आशुं कहीं कुछ ज़ज्बात बयां न कर दे
मैं तेरे करीब रहना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से दूर न जा सका
के फासले कहीं बिछड़ना आशान न कर दे
मैं तेरे बारे में सोचना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से देखा तेरा सपना
के तनहाई कहीं ज़िन्दगी वीरान न कर दे
मैं तुझ से यह सब छुपाना नहीं चाहता था
वह तो इस डर से कुछ बता न पाया
के मेरा दर्द कहीं तुझे परेशान न कर दे
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पड़ोसी
आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था
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मैं सोचता हूँ बिलकुल आप की तरह, मैं बोलता हूँ बिलकुल आप की तरह, मेरे सोच में आप ही की झांकी है, पापा मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!...
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श्रृंगार स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा, मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा, ...
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देखा है कई बार सूरज को पीला पड़ते हुए, देखा भी है तेरे चेहरे को गुलाबी रंग ओढ़ते हुए, यह आलम है अब के याद नहीं श्याम होती की नहीं, प...