लेखक: महाराणा गणेश
मैं एक वट वृक्ष हूँ । कुछ लोग यहाँ मुझे बरगद भी कहते हैं । मेरी स्थिति समझने के लिए मेरे आस पास की स्थिति के बारे में जानना ज़रूरी है । कुछ साल पहले मैं एक खुली ज़मीन पर खड़ा हुआ करता था जहाँ से मैं मीलों दूर तक देख पाता था । अब ऐसी स्थिति नहीं है | इंसानो ने कई बड़े बड़े मकान, ईमारत बना दिए हैं मेरे आस पास । एक रास्ता भी बन गया है आने जाने के लिए; अब मैं उस रास्ते के किनारे खड़ा हूँ ।
मैं देख पा रहा हूँ कुछ लोग उस रास्ते से चल कर आ रहे हैं कुछ हत्यार लिए ।शायद कोई ख़ास काम से कहीं जा रहे हैं ।
थोड़ी थोड़ी बारिश हो रही है । कहते हैं पिछले साल के मुक़ाबले इस साल कम बारिश होगी ।
अच्छा, यह जो मेरे शरीर पे बँधे हुए धागे आप देख रहे हैं, पता है यह क्या है? कुछ औरतें आई थीं मेरे पास कुछ दिन पहले और बाँध गयी थीं ये धागे । बहुत सजधज के आई थीं सब । मेरी पूजा भी की । आपस मे बात कर रही थीं
कि आज वट पूर्णिमा है और मेरी पूजा करने से उनकी पतियों की आयु लंबी हो जाएगी । फिर वे सब मेरे सामने खड़ी होके मेरे साथ अपनी अपनी सेल्फी निकालीं ।
वे हत्यार वाले लोग मेरे ही तरफ आ रहे हैं !
हर साल कुछ औरतें आ जाती हैं मेरी पूजा करने के लिए । लेकिन ऐसी बात नहीं है कि बाकी के दिन कोई नहीं आता । जब धूप का समय होता है, यहाँ आते जाते लोग मेरे छाँव मे थोड़ा बैठ कर बातें करते । मैं चुप चाप उनकी बातें सुन लिया करता । बीच बीच में वे मेरी बहुत तारीफ कर लिया करते । बारिश में भी जिनके पास छाता नहीं होता वे मेरे नीचे खड़े हो जाते थे कुछ देर बारिश से बचने लिए ।
जैसे अभी ये हत्यार वाले लोग मेरे नीचे खड़े हो कर बातें कर रहे हैं ।
मुझे मालूम नहीं मेरी उम्र क्या है । मैने तो कई पेड़ों को मेरे सामने सूखते देखा है । अभी कुछ साल पहले यहाँ पे एक बाड़ आई थी । मैं सोचा अब मैं इसमे बह के चला जाऊँगा । लेकिन मैं बच गया ।
ये जो हत्यार वाले लोग मेरे नीचे खड़े हैं अभी कह रहे थे कि मेरी जड़ बहुत नीचे तक है इसलिए मैं बच गया । इन लोगों में से मैं किसी किसी को पहचानता हूँ । वे जब बच्चे थे मेरे आस पास लुका छुप्पि खेलते थे ।
आ! यह क्या?! ये तो मुझे काटने की कोशिश कर रहे हैं । “ए भाई, सुनो । मुझे क्यूँ काट रहे हो । फिर किस के छाँव में बैठोगे धूप में । बारिश से कैसे बचोगे जब छाता नहीं होगा । रास्ते के किनारे ही तो खड़ा हूँ । रास्ता तो ऊधर है । एक बात तो सोचो । तुम तो बड़े हो गये, तुम्हारे बच्चे कहाँ लुका छुप्पि खेलेंगे?”
आ! ये तो काटते ही जा रहे हैं । शायद मेरी उम्र इतनी ही थी । पर एक बात है । ये जो धागे हैं क्या इनमे किसी का सांकेतिक जीवन है । अगर है तो वे औरतें किधर हैं जो सांकेतिक तौर पे इन्हे बाँध गई थीं । अच्छा वे औरतें अगली बार कहाँ ढूढ़ेंगी मेरे जैसा एक पेड़ । शायद वे इन्ही लोगों की पत्नियाँ होंगी । मुझसे गले मिलकर धागा बाँध कर वे इनकी जीवन लंबी कर रही थी, और आज ये मेरा ही जीवन समाप्त कर रहे हैं ।
अब मैं कट चुका हूँ । थोड़ी थोड़ी जान बाकी है । काटने वाले चले गये । दो चार लोग यहाँ खड़े होकर बात कर रहे थे अभी अभी । कह रहे थे यहाँ एक वट वृक्ष हुआ करता था । ये भी कह रहे थे कि इस साल कम बारिश होगी ।
Monday, July 1, 2019
Thursday, June 20, 2019
मुझ को ऐतबार है मेरे तरीके पर
मैं कामयाब हूँ मेरे ज़हन में है
मैं खुश हूँ बिना किसी को गम दिए
दुनिया के होंगे अपने तरकीबें ख़ास
मुझ को ऐतबार है मेरे तरीके पर
मैं खुश हूँ बिना किसी को गम दिए
दुनिया के होंगे अपने तरकीबें ख़ास
मुझ को ऐतबार है मेरे तरीके पर
Saturday, May 25, 2019
रुख़ हवा का तय करता है
रुख़ हवा का तय करता है मैं किधर जाऊं
फिर क्या हुआ जो खुद की नज़र से उतर जाऊं
भीड़ में हूँ मैं बस एक भेड़
सब जिधर जाएँ, मैं भी उधर जाऊं
पानी सा हूँ, रंग नहीं है मेरा कोई
जो मिले, घोल के खुद में नीचे गुज़र जाऊं
फिर क्या हुआ जो खुद की नज़र से उतर जाऊं
भीड़ में हूँ मैं बस एक भेड़
सब जिधर जाएँ, मैं भी उधर जाऊं
पानी सा हूँ, रंग नहीं है मेरा कोई
जो मिले, घोल के खुद में नीचे गुज़र जाऊं
Friday, April 26, 2019
कर लिए होते
पिटारा वादों का खोलने से पहले
काम कुछ चंद तो कर लिए होते
नया अकाउंट खोलना चाहते हो
पुराने को बंद तो कर लिए होते
क्या कहोगे जनता से जब जाओगे?
बहानों का प्रबंध तो कर लिए होते
Monday, April 15, 2019
Monday, October 22, 2018
यह चेहरा
मुझको
मुझसे मिलाती है,
नये
कुछ सपने दिखाती है
धुन
कोई प्यारा सुनाती है
यह चेहरा
अंदाज़-ए-सादगी सिखाती
है
मुझमे
आशिकी जगाती है
बिन कहे सब
कह जाती है
यह चेहरा
कहना
चाहता हूँ, पर रोकती
है
चुप
जो रहूं, तो टोकती है
दिल-ओ-दिमाग़ को
झक झोरती है
यह चेहरा
आईना
है सच दिखाती है
हसीन अफ़साने
सुनाती है
ख्वाब
में अक्सर आ जाती है
यह चेहरा
मुद्दत
के बाद आती है
मुझे
शायर बनाती है
महीनो
औुझल हो जाती है
यह चेहरा
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पड़ोसी
आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था
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देखा है कई बार सूरज को पीला पड़ते हुए, देखा भी है तेरे चेहरे को गुलाबी रंग ओढ़ते हुए, यह आलम है अब के याद नहीं श्याम होती की नहीं, प...
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