Thursday, August 9, 2018

मेरे मन के गगन में

मेरे मन के गगन में जो सोच के ये तारें हैं
कुछ टिमटिमा के जल रहें, बुझ गये बाकी सारे हैं

अंदर अंदर से खोखले ऊपर ऊपर से प्यारे हैं
ज़रा कहीं उजाला है बाकी सब अँधियारे हैं

थके हुए, सोए से हैं, पर मन रखे सवारे हैं
नासमझ, नादान हैं, नाराज़, बिचारे हैं 

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