बात कुछ हो ना पाई मुलाक़ात किए तो क्या
मुझको बस हिचकी सी आई वह याद किए तो क्या
मुझको बस हिचकी सी आई वह याद किए तो क्या
आग लगी थी, चारों और धुआँ धुआँ था कहाँ जाता, इधर खाई तो उधर कुआँ था लूटाके सब हसा मैं बैठ अंगारों पर राख पर बैठ पड़ोसी जो रो रहा था