तेरी आँखों में मेरी एक छवि तो दिखने दे
तेरे दिल में मेरी एक याद तो टिकने दे
रुक जा ज़रा जाने से पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे
तेरे संग बिताये हर लम्हा
कलम के सहारे कागज़ पे उतार दूँ
हर नोकझोंक हर वाकया
लफ़्ज़ों के ज़रिये छंदों में सवार दूँ
जुदाई के पहले तुझसे मेरी
दोस्ती के कुछ दास्ताँ तो बने
बंधनों से आज़ादी से पहले
खुमारी के कुछ समां तो बने
गुलशन में कुछ और फूल भी खिलने दे
तेरी ही मदमस्त खुशबु उन्हें भी मिलने दे
ताज़ा कोई घाव देने से पहले
मेरा ज़ख्म पुराना सिलने दे
रुक जा ज़रा जाने पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे
तेरी आँखों में मेरी एक छवि तो दिखने दे
तेरे दिल में मेरी एक याद तो टिकने दे
रुक जा ज़रा जाने से पहले
मेरी आत्मकथा को बिकने दे
लेखक: महाराणा गणेश
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