यह
रोशनी वही बुझी बुझी सी है
ये
डालियाँ वही रूखी रूखी सी है
ये
रास्ते वही हैं ऊबड़ खाबड़
यह
नदिया वही सूखी सूखी सी है
यह
पनघट पहचाना सा लगे
यह
राही दीवाना सा लगे
सहमायी
सी वही युवती खड़ी
ठहरा
यह पल ठिकाना सा लगे
यह
कैसी अजीब कश्मकश है
वहम
या शायद कोई अक्स है
अनदेखा
अंजाना हर राह पर
जाना
पहचाना सा हर शख्स है
हर
पुतला लगे आदमी ठहरा सा
हर
आदमी चलता फिरता पुतला सा
यूँ
लगा मुझे इस घड़ी जैसे
इन्हीं
रास्तों से कभी मैं गुज़रा था
लेखक: महाराणा गणेश
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Hey Gannu...gud one save some typos...like the feel of it...Inhi rasto se hum bhi kabhi guzre the...gud job :)
ReplyDeletedo char pal ka bhi basera tha
ReplyDeletekabhi is jagaha koi sabera tha
yun laga mujhe iss ghadi jaise
inhi raston se kabhi gujra tha
Very nice Sri...
I like it!!!Very Nicely presented and written.
ReplyDeleteSeems like u r nostalgic about something, is it? Well versed, a soul tagged 'weirdo' can only say dat!!! :)
ReplyDeleteThanks Priya.. only a weirdo can understand another..
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