Tuesday, December 8, 2015
Thursday, October 1, 2015
चादर थोड़ी छोटी ही पड़ी
वक़्त के साथ मैं बढ़ता रहा,
मेरी चादर भी हुई बड़ी
जब भी पैर फैलाया पर,
चादर छोटी ही पड़ी
आसमान से घटने लगी तो
बढ़ी ज़मीन
से दूरी
कसर हमेशा रही और शायद
कभी ना होगी
पूरी
Friday, March 13, 2015
नारी, तेरी यही कहानी
हर बाधा को परास्त करने की तुम
क्षमता प्राप्त कर लेती हो
पीड़ा की शेष बिंदु को छूँकर
ममता प्राप्त कर लेती हो
सब से अधिक दुख सहती हो पर
औरों के दुख पर अश्रु बहाती हो
बलिदानों की नींब पर अपने
हर घर तुम ही सजाती हो
हर रूप में अनुरूप तुम
हर क्षेत्र में उत्कृष्ट तुम
वो गाँव, शहर, वो देश धनी
नारी, हो जहाँ समृद्ध तुम
और अब जब, हर विषय में आगे बढ़ी हो तुम
एवरेस्ट के बाद अंतरिक्ष में खड़ी हो तुम
एक महान कवि की कविता याद करता हूँ
पर युग के हिसाब से बदलने का किंचित प्रयास करता हूँ
भले रहे जीवन भर आँचल में दूध आँखों में पानी
नारी, तेरी यही कहानी, खुद को कभी अबला ना मानी
Sunday, January 11, 2015
नींद के साये मे मैं जागा रहा
नींद
के
साये
मे
मैं
जागा
रहा
रात
से
लोरी
सुन
सुन
कर
थक
गया
चाँदनी
की
चादर
भी
कम
पड़ी
मुझको
ख्वाब
पलकों
तक
आकर
रुक
गया
ये
शायद
कोई
इंक़लाब
की
दस्तक
है
या
आँखें
ख्वाबों
की
मेज़बानी
नहीं
चाहती
मैं
बेचैन
हूँ
नींद
से
आँखों
की
दूरी
से
और
सुबह
है
कि
रात
की
जवानी
नहीं
चाहती
ऐसी
क्या
कशिश
है
बेहोशी
मे?
होश
मे
रहूं
और
आए
तो
सोचूँ
तोड़
मरोड़
कर
देखूं
खामोशी
मे
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