Wednesday, December 25, 2013
Tuesday, December 24, 2013
आज का गब्बर
अभिनेताओं से बड़ा ये अभिनेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं, नेता है
लूटने की हमे क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है
वह घोड़े पे आता था, ये गाड़ी में आता है
वह पहाड़ी पे रहता था, ये बंगले में रहता है
वह होली पे लूटने आता था
ये बिना आये ही लूट लेता है
वह खाकी पहनता था, ये खादी पहनता है
वह अनाज ही लूटता था, ये चारा भी लूटता है
खुद के वज़ूद को बचाने की खातिर
वह हाथ काटता था, यह देश काटता है
लोगों के सपनो को अपना कहके बेचे, ऐसा बिक्रेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं, नेता है
लूटने की हमे क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं, नेता है
लूटने की हमे क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है
वह घोड़े पे आता था, ये गाड़ी में आता है
वह पहाड़ी पे रहता था, ये बंगले में रहता है
वह होली पे लूटने आता था
ये बिना आये ही लूट लेता है
वह खाकी पहनता था, ये खादी पहनता है
वह अनाज ही लूटता था, ये चारा भी लूटता है
खुद के वज़ूद को बचाने की खातिर
वह हाथ काटता था, यह देश काटता है
लोगों के सपनो को अपना कहके बेचे, ऐसा बिक्रेता है
आज का गब्बर डाकू नहीं, नेता है
लूटने की हमे क्या ज़रुरत है इसे
ये मिलने से पहले जो ले लेता है
Saturday, November 9, 2013
घड़ी और कॅलंडर
सुबह सवेरे आज मैने, जब आईना
देखा
रह गया हैरान
जब खुद को ही ना देखा
दिखा तो बस
एक घड़ी और कॅलंडर
बातें कर रहे
थे, उस
आईने के अंदर
घड़ी बोला, कॅलंडर भाई,
अब तू तो
उतर जाएगा
तेरी जगह पर
कोई दूसरा, अब यहाँ
पर आएगा
कैसा लग रहा
है तुझे, होने वाली इस बात
पर?
कहना चाहेगा कुछ तू, बदल
रहे हालात पर?
दुखी मन से कॅलंडर
बोला, कहूँ मैं क्या, घड़ियाल
उम्र मेरी तो होती
है, बस एक ही साल
एक बात है,
खुश था बहुत,
जिस दिन मैं आया था
नई आस एक
सब के दिल में, मैने
जगाया था
हुआ था स्वागत
मेरा तो खूब
आतिशबाज़ी से
नाच रहे थे,
झूम रहे थे
लोग बहुत मस्ती
से
सोचा मैं,
ऐसा है अगर
आगाज़ मेरे जीवन
का
होने वाला है
फिर खूब अंदाज़ मेरे जीवन
का
जाते जाते पर
लगता है, कमी बहुत
है रह गयी
बहुतों की ख्वाहिशें
जो, ख्वाहिशें ही
रह गयी
पता नहीं इतिहास
में, कैसा दर्ज़ मैं हुंगा
डर है कहीं धोखेबाज़
तो नहीं कहलाऊंगा
मुस्कराते घड़ी
बोला, खुद को
दोष क्यूँ देता
है?
नहीं तेरा जो
काम उसके बिगड़ने
से क्यूँ रोता
है?
सही महिना दिन बताना,
तेरे हाथ इतना
ही था
देख उसे दिशा चुनने का काम
मानव का ही था
तुझ से पहले
जितने भी, टँगे
थे इस दीवार
पर
हाल दिल का
सभी का था,
ऐसा ही इस
मोड़ पर
खुशी खुशी चला
जा रख मत,
मन पर कोई
बोझ
अच्छे बुरे सभी
वजह से, याद
करेंगे लोग
पड़ी नज़र फिर तभी अचानक घड़ी की मेरी ओर
बोला वह, "है मानव यहाँ
रहो चुप, कॅलंडर"
चकित मैं देखा मुड़के
तो, घड़ी कॅलंडर दोनो थे
सुबह सवेरे आज,
गुपचुप गुमसुम दोनो थे
Saturday, October 19, 2013
हाँ, वह भी एक दिया है
कच्चा मास भी खाने से रोका,
जानवरों को पास आने से रोका,
जंगल जला कर जिसने ज्ञान जगाया है,
हाँ, वह भी एक दिया है!
आने से पहले जिसको दर्द दिया,
आते समय जिसको दर्द दिया,
आने के बाद जिसको दर्द दिया,
दर्द के बदले जिसने ममता बरसाया है,
हाँ, वह भी एक दिया है!
बरामदे में जाने कबसे वह खड़ा है,
तूफान मे भी वह नहीं गिरा है,
जर्जर अवस्था है, जीवन थोड़ा है,
पर बरसों से जो उसने सेवा किया है,
हाँ, वह भी एक दिया है!
प्यासे को जिसने पानी पिलाया,
अज्ञान का अंधकार मिटाया,
उजाले की और का रास्ता दिखाया,
ज्ञान के बदले वह कुछ ना लिया है,
हाँ, वह भी एक दिया है!
आने से जिसको मिलता भत्सना,
हुआ स्वागत तो उसका कभी ना,
औरों के त्रुटि से है जो बना,
सफलता के पहले का जो आसन लिया है,
हाँ, वह भी एक दिया है!
Thursday, October 17, 2013
प्याज नवरस
श्रृंगार
स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा,
मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा
हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा,
ऐ प्याज, धरती से तू तब उभरा होगा
हास्य
आवेश में आकर पति बोला पत्नी से,
छुटकारा मुझे कब मिलेगा तुझ से?
ले लूँ अगर उलटे वह साथ फेरे,
क्या हो जाएँगे शादी के दिन पूरे?
पत्नी बोली किस बात की है फ़िक्र तुमको,
चलो सूझ रहा एक हल मुझ को
दस बोरी प्याज जो लाई थी दहेज में,
वापस करो तो चली जाती हूँ अभी मैं
पति बोला जितना तू मुझ को रुलाई है,
प्याज मे भी वह बात नहीं
दस बोरी प्याज तेरे मुँह पे मार देता,
पर इतनी मेरी औकात नहीं
अद्भुत
फिर से सुर और असूरों मे जंग होता,
आज अगर समुद्र मंथन होता
अमृत छोड़ प्याज लेकर एक असूर भागता,
उसी वजह से उसका सिर छेदन होता
शांत
बहुत दिनों से रसोई मे जाकर वह रोई नहीं,
ऐसा नहीं कि हमारे बीच कोई खिटपिट हुई नहीं
मेरी शादी की कविता में जो शांत रस का प्रभाव है,
वह इसलिए क्यूंकी रसोई मे आजकल प्याज का अभाव है
रौद्र
अमीर ग़रीब हर कोई मेरे सामने एक सा था,
स्वाद सब के पकवान को एक समान मैं देता था
चंद लोगों के लोभ ने पर मचा दिया है बदहाल,
ग़रीब हो गया मुझसे दूर, चोर हो रहे मालामाल
वीर
हूँ प्याज मैं सुनलो,
किस तेज़ का हूँ वंशज मैं
रुला सकता हूँ खुद कटके,
कट सकता हूँ हस हसके
करुणा
काटते थे मुझको रो कर भी,
खुश होते थे सब बाँट मुझे
हाय कैसा समय यह आ गया
जो तरस रहे सब दाँत मुझे
भयानक
इक ऐसा क्या मंज़र होगा,
स्थिति और बदतर होगा!
जो अभी निगल चुका हूँ मैं,
क्या प्याज आखरी वह होगा?
विभत्स
जाने ये किसका दुकान है,
यह प्याज है या कोई और सामान है
इतनी जमाखोरी जो की है कोई,
छी! वह कैसा इनसान है!!
स्वाद जब मिट्टी में दफ़न हुआ होगा,
मीठे ने जब तीखे को समर्पण किया होगा
हर पकवान ने तेरे लिए प्रार्थना किया होगा,
ऐ प्याज, धरती से तू तब उभरा होगा
हास्य
आवेश में आकर पति बोला पत्नी से,
छुटकारा मुझे कब मिलेगा तुझ से?
ले लूँ अगर उलटे वह साथ फेरे,
क्या हो जाएँगे शादी के दिन पूरे?
पत्नी बोली किस बात की है फ़िक्र तुमको,
चलो सूझ रहा एक हल मुझ को
दस बोरी प्याज जो लाई थी दहेज में,
वापस करो तो चली जाती हूँ अभी मैं
पति बोला जितना तू मुझ को रुलाई है,
प्याज मे भी वह बात नहीं
दस बोरी प्याज तेरे मुँह पे मार देता,
पर इतनी मेरी औकात नहीं
अद्भुत
फिर से सुर और असूरों मे जंग होता,
आज अगर समुद्र मंथन होता
अमृत छोड़ प्याज लेकर एक असूर भागता,
उसी वजह से उसका सिर छेदन होता
शांत
बहुत दिनों से रसोई मे जाकर वह रोई नहीं,
ऐसा नहीं कि हमारे बीच कोई खिटपिट हुई नहीं
मेरी शादी की कविता में जो शांत रस का प्रभाव है,
वह इसलिए क्यूंकी रसोई मे आजकल प्याज का अभाव है
रौद्र
अमीर ग़रीब हर कोई मेरे सामने एक सा था,
स्वाद सब के पकवान को एक समान मैं देता था
चंद लोगों के लोभ ने पर मचा दिया है बदहाल,
ग़रीब हो गया मुझसे दूर, चोर हो रहे मालामाल
वीर
हूँ प्याज मैं सुनलो,
किस तेज़ का हूँ वंशज मैं
रुला सकता हूँ खुद कटके,
कट सकता हूँ हस हसके
करुणा
काटते थे मुझको रो कर भी,
खुश होते थे सब बाँट मुझे
हाय कैसा समय यह आ गया
जो तरस रहे सब दाँत मुझे
भयानक
इक ऐसा क्या मंज़र होगा,
स्थिति और बदतर होगा!
जो अभी निगल चुका हूँ मैं,
क्या प्याज आखरी वह होगा?
विभत्स
जाने ये किसका दुकान है,
यह प्याज है या कोई और सामान है
इतनी जमाखोरी जो की है कोई,
छी! वह कैसा इनसान है!!
Thursday, May 23, 2013
पापा, मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह
मैं बोलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे सोच में आप ही की झांकी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!
जब कभी कहीं ऐसा मोड़ आता है,
जब चलना मुश्किल सा लगता है,
सारी उर्जा लगाने के बाद भी,
आगे बढ़ना मुश्किल सा लगता है!
आँख मूँद कर बस यह सोचता हूँ
कि आप होते तो क्या करते, पापा
और जो मन में आये वह कर देता,
फिर सफर सुहाना सा लगता है!
मैं गिरता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं उठता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं आप ही का अक्स हूँ, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!
मेरे साथ में हो, मेरे पास में हो,
आप मेरी हर सांस में हो,
अँधेरे में जब जीवन हो सारा,
एक आप ही मेरी हर आस में हो!
आप की हर बात याद है मुझे,
आप हर पल मेरी याद में हो,
बिछड़ गए हम बरसों पहले पर,
आप कल में थे, आप आज में हो!
मैं रुकता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं चलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे हर कदम में आप की निशानी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!
मैं सोचता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मैं बोलता हूँ बिलकुल आप की तरह,
मेरे सोच में आप ही की झांकी है, पापा
मैं दिखता हूँ बिलकुल आप की तरह!
--------------------------------------------
MAIN SOCHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN BOLTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE SOCH ME AAP HI KI JHANKI HAI, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!
JAB KABHI KAHIN AISA MOD AATA HAI,
JAB CHALNA MUSHKIL SA LAGTA HAI!
SAARI URJA LAGANE KE BAAD BHI,
AAGE BADHNA MUSHKIL SA LAGTA HAI!
AANKH MOOND KAR BAS YEH SOCHTA HUN,
KI AAP HOTE TO KYA KARTE, PAPA
AUR JO MAN ME AAYE WOH KAR DETA,
PHIR SAFAR SUHANA SA LAGTA HAI!
MAIN GIRTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN UTHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN AAP HI KA AKS HUN, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!
MERE SAATH ME HO, MERE PAAS ME HO,
AAP MERI HAR SAANS ME HO!
ANDHERE MEIN JAB JEEVAN HO SARA,
EK AAP HI MERI HAR AAS ME HO!
AAP KI HAR BAAT YAAD HAI MUJHE,
AAP HAR PAL MERI YAAD ME HO!
BICHHAD GAYE HUM BARSO PAHLE,
PAR AAP KAL MEIN THE, AAP AAJ MEIN HO!
MAIN RUKTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN CHALTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE HAR KADAM ME AAP KI NISHANI HAI, PAPA
MAIN DIKHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH!
MAIN SOCHTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MAIN BOLTA HUN BILKUL AAP KI TARAH,
MERE HAR SOCH ME AAP HI KI JHANKI HAI, PAPA
Saturday, April 20, 2013
इंसान के लिए भी इंसान इंसान नहीं रहा
इंसान के लिए भी इंसान इंसान नहीं रहा
सदियों की हमारी सभ्यता का हाल अब यही रहा
इंसान के लिए भी इंसान इंसान नहीं रहा
-----------------------------------------------------------------
Sadiyon ki hamari sabhyata ka haal ab yahi raha
Insaan ke liye bhi insaan insaan nahin raha
Neta kahke sar pe jise bithaye the
Satta ke nashe me tan ke baitha hai
Jise saumpa tha hifazat ka jimma
Wohi lootera ban ke baitha hai
Hakeem, jise mana tha khuda
Kar raha jism ka sauda hai
Shiksha ka jo mandir tha pahle
Woh vyapariyon ka adda hai
Khudgarzi me dusron ka ab khayal nahin raha
Insaan ke liye bhi insaan insaan nahin raha
Sab faryadi hai to kanoon kaun tod raha hai
Koi jurm kar raha hai to koi jurm hote dekh raha hai
Beti ko kisi ka beta chhed raha hai
To beta kisi ki beti ko chhed raha hai
Apne aapko bachane ke firaq me
Har koi dusre ki taraf ishara kar raha hai
Koi aag laga ke tamasha dekh raha hai
To koi usi aag me haath sek raha hai
Khud ke gireban me jhankne ka majal nahin raha
Insaan ke liye bhi insaan insaan nahin raha
Sadiyon ki hamari sabhyata ka haal ab yahi raha
Insaan ke liye bhi insaan insaan nahin raha
Wednesday, April 17, 2013
जो मेरे सामने तू आती है
हर बात मेरे लबों पे रुक जाती है
जो मेरे सामने तू आती है
तू पलकें उठाके मुझे देखा न कर
मेरी नज़रें तेरी आँखों में थम जाती है
उन थरकती होठों को कुछ कहने न दे
बेवाक मेरी जुबां लडखडा जाती है
वह लट को अपने रुखसार पे ठहरने न दे
मेरी ज़हन में वही तस्वीर छप जाती है
पर यह सुनके तू मुझसे दूर न जाया कर
फिर मेरी निगाहें तुझे ही बुलाती हैं
धडकनों की रफ़्तार बढ़ जाती है
जो मेरे सामने तू आती है
हर बात मेरे लबों पे रुक जाती है
जो मेरे सामने तू आती है
----------------------------------------------
Har baat mere labon pe ruk jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
Tu palken uthake mujhe dekha na kar
Meri nazren teri aankhon mein tham jati hai
Un tharakti hothon ko kuch kahne na de
Bewak meri zuban ladkhada jati hai
Woh lat ko apne rukhsaar pe thaharne na de
Meri zahan mein woh tasveer chhap jati hai
Par yeh sunke tu mujhse door na jaya kar
Meri nigahen phir tujhe hi bulati hai
Dhadkanon ki raftaar badh jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
Har baat mere labon pe ruk jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
जो मेरे सामने तू आती है
तू पलकें उठाके मुझे देखा न कर
मेरी नज़रें तेरी आँखों में थम जाती है
उन थरकती होठों को कुछ कहने न दे
बेवाक मेरी जुबां लडखडा जाती है
वह लट को अपने रुखसार पे ठहरने न दे
मेरी ज़हन में वही तस्वीर छप जाती है
पर यह सुनके तू मुझसे दूर न जाया कर
फिर मेरी निगाहें तुझे ही बुलाती हैं
धडकनों की रफ़्तार बढ़ जाती है
जो मेरे सामने तू आती है
हर बात मेरे लबों पे रुक जाती है
जो मेरे सामने तू आती है
----------------------------------------------
Har baat mere labon pe ruk jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
Tu palken uthake mujhe dekha na kar
Meri nazren teri aankhon mein tham jati hai
Un tharakti hothon ko kuch kahne na de
Bewak meri zuban ladkhada jati hai
Woh lat ko apne rukhsaar pe thaharne na de
Meri zahan mein woh tasveer chhap jati hai
Par yeh sunke tu mujhse door na jaya kar
Meri nigahen phir tujhe hi bulati hai
Dhadkanon ki raftaar badh jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
Har baat mere labon pe ruk jati hai
Jo mere saamne tu aati hai
Saturday, April 13, 2013
असमंजस
वह सुबह भी है वह शाम भी;
वह दिन भी है वह रात भी;
पर कुछ अधूरा सा है आज तो!
मन बावरा सा है आज तो!
मैं ढूंढ रहा हूँ क्या?
मैं ढूंढ रहा हूँ किसे?
कुछ मिलेगा मुझे आज तो!
या कोई ढूंढेगा मुझे आज तो!
मैं वहां हूँ जहाँ होना था?
या मैं वहां था जहाँ होना था?
मैं खुद को भूल गया हूँ आज तो!
मैं खुद को खोज रहा हूँ आज तो!
मन मचल रहा है बहुत?
या मन शिथिल हुआ है बहुत?
ये सूनापन चुभ रहा है आज तो!
धैर्य दीपक बुझ रहा है आज तो!
वह सुबह भी है वह शाम भी;
वह दिन भी है वह रात भी;
पर कुछ अधूरा सा है आज तो!
मैं ढूंढ रहा हूँ किसे?
कुछ मिलेगा मुझे आज तो!
या कोई ढूंढेगा मुझे आज तो!
मैं वहां हूँ जहाँ होना था?
या मैं वहां था जहाँ होना था?
मैं खुद को भूल गया हूँ आज तो!
मैं खुद को खोज रहा हूँ आज तो!
मन मचल रहा है बहुत?
या मन शिथिल हुआ है बहुत?
ये सूनापन चुभ रहा है आज तो!
धैर्य दीपक बुझ रहा है आज तो!
वह सुबह भी है वह शाम भी;
वह दिन भी है वह रात भी;
पर कुछ अधूरा सा है आज तो!
मन बावरा सा है आज तो!
----------------------------------------------
Woh subah bhi hai woh sham bhi
Woh din bhi hai woh raat bhi
Par kuch adhoora sa hai aaj to
Man bawra sa hai aaj to
Woh din bhi hai woh raat bhi
Par kuch adhoora sa hai aaj to
Man bawra sa hai aaj to
Main dhoondh raha hun kya?
Main dhoondh raha hun kise?
Kuch milega mujhe aaj to
Ya koi dhoondhega mujhe aaj to
Main wahan hun jahan hona tha?
Ya main wahan tha jahan hona tha?
Main khud ko bhool gaya hun aaj to
Main khud ko khoj raha hun aaj to
Man machal raha hai bohut?
Ya man shithil hua hai bohut?
Yeh suna pan chubh raha hai aaj to
Dhairya deepak bujh raha hai aaj to
Woh subah bhi hai woh sham bhi
Woh din bhi hai woh raat bhi
Par kuch adhoora sa hai aaj to
Man bawra sa hai aaj to
Woh din bhi hai woh raat bhi
Par kuch adhoora sa hai aaj to
Man bawra sa hai aaj to
Saturday, February 16, 2013
खुशनसीब हूँ, के यह रिश्ता तुम से जुड़ना था
खुशनसीब हूँ, के यह रिश्ता तुम से जुड़ना था
और फिर ज़िन्दगी को ऐसी हसीन गली में मुड़ना था
खुशनसीब हूँ, के यह रिश्ता तुम से जुड़ना था
यह माना कि मुझे किसी ना किसी से मिलना था
खुशनसीब हूँ, के यह रिश्ता तुम से जुड़ना था
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