Sunday, November 25, 2012

वक़्त बर्बाद करने के लिए नहीं होता

वक़्त  बर्बाद करने के लिए नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!

गिरे जो बादल बन के बूँद धरती पे;
वह बूँद फिर बादल बन तो सकता है;
पर वक़्त बादल तो नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!

गिरे जो कोई पेड भारी बारिश में;
धरती पे वह कई बीज बो तो सकता है;
पर वक़्त पेड तो नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!

दिशा मोड़े तो भी नदी उफान  में आकर;
एक न एक दिन सागर में वह खो तो सकती है;
पर वक़्त नदी तो नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!

जो सुरज आज डूब रहा है कहीं क्षितिज पर;
वह कल फिर सुबह का सृजन कर तो सकता है;
पर वक़्त सुरज तो नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!

वक़्त  बर्बाद करने के लिए नहीं होता है;
जो आज होता है वह कल तो नहीं होता है!
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Waqt barbaad karne ke liye nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!

Gire jo badal ban ke boond dharti pe;
Woh boond phir badal ban to sakte hain;
Par waqt badal to nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!

Gire jo koi paed bhaari barish mein;
Dharti pe woh kai beej bo to sakta hai;
Par waqt paed to nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!

Disha maude jo nadi ufaan me aakar;
Ek na ek din woh sagar me kho to sakti hai;
Par waqt nadi to nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!

Jo suraj aaj doob raha hai kahin kshitij par;
Woh kal phir subah ka srujan kar to sakta hai;
Par waqt suraj to nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!

Waqt barbaad karne ke liye nahin hota hai;
Jo aaj hota hai woh kal to nahin hota hai!


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Saturday, November 17, 2012

रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?

















तू ठंडक दे रूह को, फिर भी  
तू शुकून दे मन को, फिर भी   
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी 
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  

थोडा सा रोशनी तुझे देकर 
चाँद क्यूँ इतराता है? 
दूर कोई तारा टिम-टिमाकर 
तुझे क्यूँ चिढाता है?
   
है गवाह तू इतने किस्सों का 
नशे का, चोरी का, गुनाह का  
के भूल जाते सब ये के
तू वजह भी है सुबह का

है इतनी ख़ामोशी तुझ में, फिर भी
है इतनी मदहोशी तुझ में, फिर भी 
तेरे साये में प्यार पनपता है, फिर भी 
तेरे आने से जहां महकता है, फिर भी  
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  
 
तू ठंडक दे रूह को, फिर भी  
तू शुकून दे मन को, फिर भी   
तेरे आगोश में सब करें आराम, फिर भी
आधे वक़्त पे है तेरा नाम, फिर भी 
तेरी कोई नहीं सहेली क्यूँ? 
रात, तू इतनी अकेली क्यूँ?  

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Wednesday, October 24, 2012

समय रहते जागृत कर लो अपने ह्रदय के राम को

जब कभी तुम्हारी ज़मीर पर लोभ हावी हो जाये; 

    जब कभी तुम्हारे व्यवहार पर क्रोध हावी हो जाये; 

समय रहते जागृत कर लो अपने ह्रदय के राम को, 

    इससे पहले के कोई रावन तुम पर भारी हो जाये! 


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Wednesday, June 20, 2012

चाँद की शिकायत

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

बेसब्र मैं और यह मुझे
और बेचैन कराता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

रोज मैं इससे मिन्नतें किया करता हूँ;
महोब्बत की दुहाई भी दिया करता हूँ;
समझ सके मेरी हालत को इसलिए,
कुछ अफ़साने सुना दिया करता हूँ!

पर यह मेरे जज्बातों का,
बेझिझक मजाक उडाता है;
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा दिखाता है!

अब नहीं होता इंतज़ार रे;
बर्दाश्त की हद हुआ  पार  रे
सावन तो आया पर आँखें हैं प्यासी,
दिल में उदासी बरकरार है!

बादलों में खेल लुक्काछुप्पी,
मायूसी और बढाता है!
महीने में सिर्फ एक ही बार तो,
तेरा चेहरा दिखाता है!

जान  मेरी, यह चाँद  मुझे   
देख कितना सताता है!
महीने में सिर्फ एक बार,
तेरा चेहरा  दिखाता  है!

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Saturday, April 21, 2012

साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!


एक  सोच  में  डूबा  था  मैं  कई  दिनों  से 
के  विशाल  नाराज़  क्यूँ  है  मुझ  से? 
उस  सोच  से  निकला  नहीं  था  के  प्रशांत  भी  खफ़ा  हो  गया; 
ज़हन  में  इक  यही  बात  थी  कि  ऐसा क्या  खता  हो गई! 
आज  जाके  मुझे  पता  चला  के  उनके  नाराज़गी  की वजह  क्या  थी; 
विशाल  को  बिसाल  और  प्रशांत  को  प्रोसांत  जो  मैं  कह  रहा  था! 
बुरा  ना मानो  दोस्तों  के  मैं  यह  गलती  जान  बुझके  ना  किया  करता  था; 
कोई  मेरा  नाम  पूछे तो  मैं  भी  'गणेश ' नहीं  'गणेस' कहा  करता  था! 

पहले  मैं  नाराज़  के  वजाय नाराज  हुआ  करता  था; 
पहले  मैं  ऐश  के  जगह  एस  किया  करता  था; 
पहले  मुझे  शर्म  नहीं  आती  थी , पर  मैं  सर्माता  था; 
पहले  मैं  कैश के  जगह  लोगों  को  केस  दिया  करता  था! 

हुए  कितने  दोस्त  बेवफा , हुए  कितने  अपने  पराये; 
छूटा साथ  कितने  साथियों  का , छूटे  कितने  ख़ुशी  के  साये; 
बस  एक तू  है  जिसने  मुझे  दिया  हमेशा सहारा; 
मेरी  मातृभाषा  तुने  मुझे  कभी  ना  सुधारा; 
मैं  जैसा  हूँ  मुझे  वैसे  ही  अपनाया; 
मेरे  सहुलियत  के  हिसाब  से  खुद को  बनाया!

शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरा इस बात के लिए;
साथ देना मेरा यूहीं बस साथ के लिए!  


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Sunday, January 15, 2012

आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!

किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

दिल में एक आरजू हमेशा बाकि रहती है;
यादों में ख्वाबों के भी झांकी रहती है;
इनकार में भी गुंजाईश हाँ की रहती है;

हर उम्मीद से उम्मीद बरक़रार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

कुछ ख्वाहिशें पूरे न हो सके तो;
कुछ बंधन टूट के न जुड़ सके तो;
कुछ फासले यूँ ही न घट सके तो;

इंसान को इंसान ही नागवार होता है,
आदमी इतना भी क्यूँ बेक़रार होता है!


किसी  के  जाने  से  पहले  उसके  आने  का  इंतज़ार  होता  है,
आदमी  इतना  भी  क्यूँ  बेक़रार  होता  है!

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...