Thursday, November 4, 2010

तो क्या मुझे प्यार है तुमसे ..?

खयालों में मेरी तू समाई हुयी है
बातों में यादों में छाई हुयी है
है तेरी ही खुशबू साँसों में मेरे कहीं कहीं
तो क्या मुझे प्यार है तुम से ..? – नहीं नहीं

वजूद मेरे गीतों की तेरी वजह से
है मौसम खुशियों की तेरी वजह से
है तेरी ही जुस्तजू मन में मेरे कहीं कहीं
तो क्या मुझे प्यार है तुम से ..? – नहीं नहीं

जब भी मेरी मुझसे बात होती है
दिल और दिमाग में फसाद होती है
मेरे आँखों से गिरता हर एक आंशु
तेरे लिए मेरी ज़ज्बात होती है

हर उमंग में है तेरी ही गति
हर आशा में है तेरी स्वीकृति
है तेरे ही सपने आखों में मेरे कहीं कहीं
तो क्या मुझे प्यार है तुमसे ..? – नहीं नहीं

मेरा सोचना तुझे मेरा खोजना तुझे
मेरे ख्यालों से मेरा जोड़ना तुझे
ज़माने को खटकती है मेरी पहेलियाँ
मेरे ख्वाबों में मेरा औधना तुझे

होता हूँ बेकरार रह कर तुझसे दूर
नज़रों से ओझल हो तू नहीं यह मंज़ूर

निगाहें मेरे ढूंढें तुझे यहाँ वहां
तो क्या मुझे प्यार है तुमसे ..? – हाँ हाँ

अपना अनुभव ज़रूर बतायें

यहाँ तक आया है तो आगे भी जायेगा

थका हरा उदास जब बैठा अतीत के पुर्जे खोद करदो रास्ते नज़र आये हर गुज़रे हुए मोड़ पर है आज गर ये हालात तोचुने हुए रास्तों के वजह से
कुछ फ़ैसलों से नज़दीकियों के,कुछ से फासलों के वजह से क्या होता अगर यूँ होताक्या होता अगर त्यों होताबेहतर होता या बदतर होताया सबकुछ ज्यों का त्यों होता फ़ैसले से ही अगर होता है सब कुछतो देखा जाए एक को दूसरे से जोड़ करदेखा जब चलते वक़्त को थोड़ा रोक करदो रास्ते नज़र आये हर गुज़रे हुए मोड़ पर हक़ीक़त में लौटातो पर्दा मायूसी से हटादिल से एक आवाज़ सा आयाबोला क्यूँ खोदता है अतीत का साया मत सोच, क्या खोया क्या पायेगायहाँ तक आया है तो आगे भी जायेगायहाँ तक आया है तो आगे भी जायेगा


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Wednesday, October 13, 2010

राज़ दिल के खुलने को है

राज़ दिल के खुलने को है
कोई अपना सुनने को है
रोक कर नींद को है बेठे
आँखें सपने बुनने को है
राज़ दिल के खुलने को है
कोई अपना सुनने को है
है हया के कुछ तो परदे
गुंजाईश कुछ डर की भी है
कुछ इशारा मिल गया है
घूंघट थोड़ी सरकी तो है

मुद्दतों से जो गिरा था
पर्दा वह आज उठने को है
राज़ दिल के खुलने को है
कोई अपना सुनने को है


लेखक: महाराणा गणेश
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Tuesday, October 12, 2010

है ज़रूर कोई जादू सा इन आँखों में


है ज़रूर कोई जादू सा इन आँखों में

          जो देखता वह आईने से भी जलता हूँ

या तो मैं मचलने को डूबता हूँ

          या शायद डूबने को मचलता हूँ

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किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...