Saturday, February 14, 2009

दो दिल जो भीगे थे कभी

तुझ से कोई शिकवा नहीं
जुदा हूँ पर मैं खफा नहीं
        दो दिल जो भीगे थे कभी
        फुहारों का कसूर था

बेसब्र हालातों में जब
बे -आबरू हम तुम मिले
रुशवाई की आलम में भी
बनते चले जो सिलसिले

मंजिल से थे हम बेखबर
नज़र में थी तो बस डगर
ख्वाबों का था जो कारवां
निगाहों का कसूर था
        दो दिल जो भीगे थे कभी
        फुहारों का कसूर था

मझधार से जो लौट ते
तूफ़ान से यूँ न जूझते
दामन छुड़ा ने अश्क से
पलकों को यूँ न मूंदते

घेरे पे शक के हर दफा
आती नहीं तेरी वफ़ा
थी चाँद की तलाश जो
सितारों का कसूर था
        दो दिल जो भीगे थे कभी
        फुहारों का कसूर था

तुझ से कोई शिकवा नहीं
जुदा हूँ पर मैं खफा नहीं
        दो दिल जो भीगे थे कभी
        फुहारों का कसूर था
अपना अनुभव ज़रूर बतायें

5 comments:

  1. सुंदर रचना पर हिन्दी सही लिखने का प्रयास करें ।
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है .आपके अनवरत लेखन के लिए मेरी शुभ कामनाएं ...

    ReplyDelete
  3. दो दील जो भीगे थे कभी
    फुहारों का कसूर था
    Acchi shuruaat. Swagat.

    ReplyDelete

किसे सुनाऊं हाल दिल का

किसे सुनाऊं हाल दिल का, सब के हैं ग़म अपने अपने अपनी तरह से सभी यहाँ झेले सितम अपने अपने माने सभी खुद ही के दर्द को प्यारा दुनिया मे पाले है...